मुग़ल साम्राज्य का संस्थापक बाबर को माना जाता है। बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483 को ट्रांस ऑक्सियना के प्रान्त फरगना में हुआ।
इसके पिता का नाम उमर शैख़ मिर्जा था। माता का नाम कुतलुग निगार खानम था। दादी का नाम ऐसान दौलत बेगम था। बाबर पितृ पक्ष की और से तैमूर तुर्क का 5वा वंशज था, जब की माँ की और से चंगेज़ खाँ मंगोल का 14वा वंशज था
1504 ई. में इसने काबुल पर विजय प्राप्त की। तथा 1507 में मिर्जा की उपाधि का त्याग कर पादशाह/बादशाह की उपाधि धारण की। ऐसा करने वाला यह प्रथम मुग़ल सम्राट था।
बाबर ने भारत पर पहला आक्रमण 1519 में बाजोर(पंजाब) में कीया। इसी आक्रमण के दौरान उसने भेरा(पंजाब) के किले को जीता।
IMPORTANT: भेरा आक्रमण के दौरान ही उसने सर्वप्रथम तोपखाने का प्रयोग किया।
बाबर द्वारा लडे गए प्रमुख युद्ध :
NOTE: घाघरा का युद्ध ऐसा प्रथम युद्ध था, जो की जल व थल दोनों पर लड़ा गया। इसमें पहेली बार नवो का प्रयोग किया गया।
NOTE: पानीपत विजय के बाद बाबर ने काबुल के प्रत्येक निवासी को चाँदी का एक एक सिक्का दिया, अतः उसे कलंदर कहा जाता है।
NOTE: खानवा युद्ध के दौरान उसने जिहाद का नारा दिया, तथा सैनिको पर लगने वाले तमगा कर को हटा दिया। खानवा युद्ध के बाद ही उसने गाजी की उपाधि धारण की।
NOTE: बाबर की मृत्यु 26-12-1530 को आगरा में हुई जिसे। आगरा के नूरे अफगान (आराम बाग़) में दफनाया गया। परन्तु बाद में उसे यहाँ से निकाल कर काबुल के नूरे अफगान बाग़ में दफनाया गया
बाबर ने अपने ग्रन्थ तुजुके बाबरी की रचना की, यह मूल तह तुर्की भाषा में थी।इसका चार बार फ़ारसी भाषा में अनुवाद किया गया - 2 बार हुमायु के समय पायन्दा खाँ व जैन खाँ के द्वारा। तीसरी बार अब्दुल रहीम खानेखाना के द्वारा। तथा चौथी बार शाह जहाँ के शासन काल में अबू अली तुरबती के द्वारा किया गया। इसका अंग्रेजी में अनुवाद 1905 में AS Beverage के द्वारा किया गया।
बाबर ने सड़क मापने के लिए गज-ए-बाबरी का निर्माण करवाया। बाबर को बाग़ लगवाने का बड़ा शौक था अतः उसने ज्यामितीय विधि के आधार पर नूरे अफगान (आराम बाग़ का निर्माण करवाया)
जन्म 6 मार्च 1508 को हुआ। माता का नाम महम बेगम। पिता का नाम बाबर।
हुमायु ने अपने पिता के आदेश अनुसार अपने साम्राज्य का विभाजन अपने भाइयो में कर दिया। जो की क्रमशः इस प्रकार था -
NOTE : कामरान इस विभाजन से खुश नहीं था अतः उसने पंजाब पर आक्रमण किया और उस पर अधिकार कर लिया। हुमायु ने माफ़ कर दिया।
हुमायु का सबसे बड़ा विरोधी अफगान नेता शेर शाह सूरी था।
हुमायु ने 1534-35 ई. में गुजरात के शासक बहदुर शाह के विरुद्ध अभियान किया परन्तु इस दौरान, बहादुर शाह ने चित्तौड़ के किले का घेरा डाल रखा था। चित्तौड़ की रानी कर्मावती ने हुमायु को राखी भेज कर सहायता मांगी हुमायु रानी की सहायता करने के लिए। सहारन पुर (उप्र) तक पहुंचा परन्तु आगे निर्णय नहीं ले सका, इस दौरान बहादुर शाह ने चैत्तौड पर अधिकार कर लिया।
हुमायु ने बहादुर शाह को अप्रैल 1535 में मंदसौर के युद्ध में पराजित किया बहादुर शाह भाग कर मांडू पहुंचा, यहाँ पर भी हुमायु ने उसका पीछा नहीं छोड़ा तो वह अहमदाबाद पहुंचा अहमदाबाद तक पीछा करने के बाद बहादुर शाह भाग कर गोवा चला गया।
हुमायु ने अस्करी को मालवा व गुजरात का सूबेदार नियुक्त किया।
चौसा का युद्ध : 26 जून 1539
यह युद्ध हुमायु व शेर शाह सूरी के बिच लड़ा गया। शेर शाह ने हुमायु को बक्सर के निकट पराजित किया। अनेक मुग़ल सैनिक मारे गए। हुमायु अपनी जान बचने के लिए कर्मनासा (गंगा) नदी में कूद गया। जहा उसकी जान निज़ाम सक्का नामक भिस्ती ने बचाई। इसी उपकार के बदले हुमायु ने 1555 ई. में सक्का को एक दिन का बादशाह बनाया, उसने चमड़े के सिक्के चलाए ।
NOTE : निजाम सक्का की मजार अजमेर में बानी हुई है।
NOTE : इस युद्ध के बाद शेर खाँ ने शेर शाह सूरी की उपाधि धारण की और अपने नाम के सिक्के चलाए।
कन्नौज/बिलग्राम का युद्ध : 17-5-1540
शेर शाह ने इस युद्ध में हुमायु को निर्णायक रूप से पराजित किया। हुमायु भारत छोड़ कर भागने पर मजबूर हो गया और इसी के साथ भारत में द्वितीय अफगान साम्राज्य की नीव पड़ी। इस युद्ध के लिए कहा जाता है की "एक भी तीर गोली नहीं चली और मुग़ल सेना भाग खड़ी हुई।"
शेर शाह सूरी की सेना ने हुमायु का अफगान तक पीछा किया वह भाग कर सिंध (थट्टा) पंहुचा, जहा उसका विवाह 1541 ई. में हमीदा बनो बेगम के साथ हुआ। इसी के गर्भ से अमरकोट के राजा वीरसाल के किले में 15 अक्टूबर 1542 को अकबर का जन्म हुआ।
निर्वासन काल के दौरान हुमायु ने फारस के शासक तहमाश्प के यहाँ शरण ली।
5 साल के अकबर को 1547 ई. में कामरान ने काबुल के किले पर लटकवा दिया, ताकि हुमायु किले पर तोप नहीं चला सके। हुमायु ने कामरान को अंधा कर बंधी बना लिया।
इसी समय अफगान नेता शेर शाह सूरी की मृत्यु हुई हुमायु ने भारत पर पुनः विजय करने का विचार बनाया।
मच्छीवाडा का युद्ध : 15 -5 -1555 :
इस युद्ध में हुमायु की सेना ने अफगानो को पराजित किया। तथा सम्पूर्ण पंजाब पर अधिकार कर लिया।
सरहिंद का युद्ध : 22-6-1555
इस युद्ध में सुर शासक सिकंदर शाह को बैरम खाँ ने पराजित कर दिया। इसी युद्ध के साथ हुमायु एक बार पुनः भारत का शासक बना।
24 जनवरी 1556 में हुमायु दिनपनाह नामक नगर में स्तिथ पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरा और 26 जनवरी 1556 को उसकी मृत्यु हो गयी।
लेनपूल ने लिखा है की हुमायु का अर्थ भाग्यशाली होता है। परन्तु वह अत्यंत दुर्भाग्य शाली शासक था जो जिंदगी भर लड़खड़ाता रहा। और अंततः लड़खड़ाकर ही उसकी मृत्यु हो गई।
हुमायु को ज्योतिष विद्या पर बहुत ज्यादा विश्वाश था, अतः वह सप्ताह के हर दिन अलग अलग रंग के वस्त्र पहनता था।
हुमायु का मकबरा:
अकबर के काल में निर्मित यह प्रथम ईमारत थी। जिसका निर्माण अकबर की सौतेली माँ हाजी बेगा बेगम के द्वारा करवाया गया। इसका वास्तुकार मिरक मिर्ज़ा गयास था। इसमें पहली बार दोहरे गुम्बद का प्रयोग किया गया। पहली बार चार बाग़ पद्दति का प्रयोग किया गया। इसे ताजमहल का पूर्व गामी माना जाता है। 1857 की क्रांति के दौरान अंतिम मुग़ल सम्राट बाहदुर शाह ज़फर व उसके 3 शहजादों को अंग्रेज़ अफसर हडसन के द्वारा इसी मकबरे से गिरफ्तार किया गया।
NOTE: मुग़ल काल में पहली बार संगमरमर का प्रयोग एत्मादुदौला के मकबरे में किया गया। इसी मकबरे में पहली बार पित्रा ड्यूरा का प्रयोग किया गया
जन्म 15-10-1542 को हुआ। माता का नाम हमीदा बेगम जिन्हे मरियम मकानी भी कहा जाता था। इसके जन्म पर हुमायु ने सरदारों को कस्तूरी बांटी। इसका पहला विवाह 9 वर्ष की आयु में हिन्दाल की पुत्री रजिया सुल्ताना (रुकैया बेगम) के साथ किया गया। अकबर का राज्य अभिषेक 14 फरवरी 1556 को कलानौर नामक स्थान में किया गया।
पानीपत का द्वितीय युद्ध 5-11-1556 : हेमू और अकबर( बेरम खाँ ) के मध्य. अकबर ने अंतिम हिन्दू शासक हेमू को पराजित किया। इस युद्ध का नेतृत्व बैरम खाँ के द्वारा किया गया। हेमू को मार कर अकबर ने गाजी की उपाधि धारण की। बेराम खाँ अकबर का संरक्षक था जिसकी हत्या गुजरात के पाटन नामक स्थान पर एक सुर व्यक्ति मुबारक खाँ के द्वारा की गयी।
अकबर ने बेराम खान की विधवा पत्नी सलीमा बेगम से विवाह कर लिया, तथा उसके पुत्र अब्दुल रहीम को खानेखाना की उपाधि प्रदान की। तथा उसे वकील-ए-मुतलक़ का पद प्रदान किया।
NOTE : 1560 ई. से 1562 ई. के दौरान अकबर के शासन काल पर महामंगा, उसकी पुत्री जीजी अंगा, व उसके पुत्र आधम खान का सर्वाधिक प्रभाव था। इस काल को पेटीकोट सरकार(हरम दल) कहा जाता है।
1562 में अकबर की अजमेर यात्रा के दौरान, आमेर के शासक भारमल ने मुगलो की सर्वप्रथम अधीनता स्वीकार की तथा अपनी पुत्री हरखा बाई का विवाह अकबर के साथ किया। हरखा बाई को "मरियम उज्जमानी" के नाम से जाना जाता है। इन्ही के गर्भ से 30-8-1510 को सलीम(जहांगीर) का जन्म हुआ।
आमेर शासक भारमल ने भगवानदास व मान सिंह को मुग़ल सेवा में रखा।
चित्तौड़ विजय : अकबर ने 1567-68 ई. में चित्तौड़ का अभियान किया इसी अभियान के दौरान अकबर ने एक फतेहनामा जारी किया तथा कत्लेआम करवाया, जो की अकबर के जीवन पर धब्बा माना जाता है।
असीरगढ़ विजय : असीरगढ़ मध्यप्रदेश के बुरहानपुर के पास है। यहाँ के शासक मीरन बहादुर को पराजित करने के लिए अकबर स्वयं गया। यह अकबर के जीवन का अंतिम युद्ध था।
इसी विजय के उपलक्ष में अकबर ने एक सोने का सिक्का चलवाया, जिस पर अकबर को एक घोड़े पर बैठे हुए दिखाया गया है तथा हाथ पर बाज का चित्रण है।
अकबर की मृत्यु 25-10-1605 को पेचिस के कारण हो गई। जहांगीर ने उसका मकबरा सिकंदरा आगरा में बनवाया। इस मकबरे की बनावट बौद्ध विहार जैसी है। तथा इसमें गुम्बद का प्रयोग नहीं किया गया है। इसमें केवल 4 सुन्दर मीनारों का प्रयोग किया गया है।
अकबर के समय की प्रमुख घटनाए :
जन्म : 30-8-1569
बचपन का नाम : सलीम
पिता का नाम : अकबर | माता का नाम : हरखा बाई
प्रथम विवाह: भगवंतदास आमेर के शासक की पुत्री मान बाई से किया गया। इनकी उपाधि शाह बेगम। इनका पुत्र खुसरो था। खुसरो ने विद्रोह कर दिया तो जहांगीर ने उसे अँधा करवा दिया। खुसरो का वध 1622 में शहजादा खुर्रम(शाहजहाँ ) के द्वारा किया गया।
द्वितीय विवाह: मारवाड़ के राजा उदय सिंह की पुत्री जोधा बाई। इनको मलिका ए जहाँ की उपाधि दी। इन्हे जगत गोसाई के नाम से भी जाना जाता है। इन्ही के गर्भ से खुर्रम(शाह जहाँ) उत्पन्न हुआ।
जहांगीर ने शासक बनते ही 12 घोषणाएं प्रकाशित करवाई जिन्हे आयने जहांगीरी कहा जाता है।
खुसरो ने 1606 में विद्रोह किया क्युकी अजीज कोका व मान सिंह उसे बादशाह बनाना चाहते थे। विद्रोह करने से पूर्व उसने 5वे सिख गुरु अर्जुन देव से आशीर्वाद लिया जिसे जहांगीर ने राजद्रोह का आरोप लगा कर मृत्यु दंड दे दिया।
जहाँगीर के जीवन पर सबसे ज्यादा प्रभाव नूर जहा का था। नूर जहा की माता अस्मत बेग ने गुलाब से इत्र बनाने का अविष्कार किया। नूर जहा ने श्रृंगार वस्त्र व गेहनो की नई रीती चलाई। जहांगीर की मृत्यु के बाद नूर को 2 लाख सालाना पेंशन दे कर लाहौर भेजा जहा 1645 में उसकी मृत्यु हो गयी।
जहांगीर का मकबरा नूर जहा के द्वारा लाहौर के सहोदरा नामक स्थान पर रावी नदी के तट पर बनवाया गया।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य : दक्षिण में विजय करने के बाद, जहांगीर ने शहजादा खुर्रम को शाहजहा की उपाधि दी। खुर्रम ने 1615 में मेवाड़ शासक अमर सिंह के साथ संधि की। यह संधि अकबर द्वारा अपनाई गई राजपूत मुग़ल निति का चरमोत्कर्ष थी।
जहांगीर ने फ़ारसी भाषा में तुजुके जहांगीरी लिखवाई जिसमे अपने प्रारंभिक 16 वर्षो का इतिहास स्वयं ने आगे के तीन वर्षो का इतिहास मोतमिद खाँ ने जबकि इसे पूरा करवाने का श्रेय मोहम्मद हादी को जाता है।
जहांगीर के शासन काल में 1608 में प्रथम अंग्रेज व्यापारी कप्तान हॉकिंस आया था जो अपने साथ हैक्टर नामक जहाजी बेडा भारत लेकर आया तथा आगरा के दरबार में मिला।
इसी के शासन काल में 1615 में सर टॉमस रॉ स्मिथ भारत आया तथा यह जहांगीर से अजमेर के मैगजीन के किले में मिला।
शाहजहाँ : 1627 -1658
जन्म : 5-1-1592
बचपन का नाम : खुर्रम
विवाह : नूर जहा के भाई असफ खाँ की पुत्री अर्जुमंद बनो बेगम के साथ किया गया जो इतिहास में मुमताज के नाम से प्रसिद्द हुई। जिसकी मृत्यु 1631 में शाहजहाँ के 14 वे बच्चे को जन्म देते समय बुरहानपुर में हुई। इसकी यद में ताजमहल का निर्माण किया गया। स्थापत्य व कला के विकास की दृष्टि से शाहजहाँ के शासनकाल को मुग़ल काल का स्वर्णिम युग कहा जाता है।
शाहजहा अपने जीवन के अंतिम 8 वर्ष आगरा के किले के शाह बुर्ज (मुस्समन बुर्ज) में कैदी के रूप में रहा। बंदी के रूप में रहने वाला यह मुग़ल काल का प्रथम शासक था। इसकी मृत्यु 1666 में हुई उसे ताज महल में मुमताज की कब्र के पास दफनाया गया।
इसकी मृत्यु के बाद उत्तर्राधिकार संघर्ष हुए, जो की क्रमशः निम्नलिखित हे :
लेनपूल ने दारा को लघु अकबर कहा है। दारा ने 52 उपनिषदों का फ़ारसी भाषा में अनुवाद करवाया जिसे सिर्रे अकबर कहा जाता है।
औरंगजेब का काल मुग़ल काल का पतन काल माना जाता है। औरंगजेब कट्टर सुन्नी मुस्लमान था। उसने सिक्को पर कलमा खुदवाना, 9 रोज का त्यौहार मनाना। तुलादान व झरोखा दर्शन जैसी परम्पराओ पर रोक लगा दी। उसने 1669 में बनारस फरमान के द्वारा हिन्दू मंदिरो को तुड़वाया। 1663 में उसने सती प्रथा के उप्पर पूर्णतः रोक लगा दी। औरंगजेब की धार्मिक नीतिओ के कारण जिन्दा पीर व सादगी के कारण शाही दरवेज कहा जाता है।
इसने अकबर द्वारा बंद किये गए जज़िया कर को पुनः प्रारम्भ कर दिया। संगीत कला पर रोक लगा दी। परन्तु वह स्वयं एक कुशल विणा वादक था।
मुग़ल स्थापत्य भारतीय + ईरानी + मध्य एशिया + तुर्की का मिश्रण है।
मुख्य विशेषता :
दिल्ली में शेरगढ़ नामक नया नगर और इसके दो दरवाजे लाल दरवाजा व खुनी दरवाजा
सासाराम बिहार में झील के बीचोबीच अपना मकबरा बनवाया यह 4 मंजिला है। पानी में होने के कारण द्विगुणित दीखता है। यह अष्ट कोणीय है। कनिंघम महोदय ने इसे "ताज महल" से भी सुन्दर माना है।
अकबर ने 1569 में सिकरी के निकट पहाड़ी पर इस नगर की नीव डाली। इसका वास्तुकार बहाउद्दीन था।
प्रमुख विशेषताए : चापाकार (इस्लामिक) एवं धरणिक(हिन्दू) शैली का मिश्रण है।
फर्गुसन ने फतहेपुर सिकरी को अकबर की परछाई कहा है, स्मिथ ने इसे पत्थर में ढला रोमांच कहा है
इसको भारतीय वास्तुकला (मुग़ल काल) का स्वर्णिम युग कहा जाता है। इसने लाल पत्थर के स्थान पर सफ़ेद संगमरमर का प्रयोग किया।
बीबी का मकबरा : इसे ताज महल की फूहड़ नक़ल कहा जाता है।
*जहांगीर का काल मुगलकालीन चित्र कला का स्वर्णिम काल कहा जाता है
बाबर : तुजुके बाबरी (बाबरनामा) में एक मात्र चित्रकार बिहजाद का उल्लेख है, जिसे पूर्व का राफेल कहा जाता है।
हुमायु : मुग़लकालीन चित्रकला का प्रारम्भ इसके शासन काल से माना जाता है। प्रमुख चित्रकार निम्न लिखित है:
अकबर : प्रमुख चित्रकार निम्न लिखित है:
जहांगीर : चित्रशाला की स्थापना अकारिजा खाँ के नेतृत्व में आगरा में हुई। जहांगीर के काल में सबसे प्रमुख चित्रकार
यह दोनों प्राकृतिक चित्र बनाने में माहिर मने जाते थे।
जहांगीर के काल में बिशनदास को भी अग्रणी चित्रकार माना गया है। जो की मानव छवि बनाने में माहिर था। जहांगीर स्वयं एक महान चित्रकार था।
मुगलकालीन प्रसिद्द चित्र :
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