इतिहास शब्द की रचना :: इतिहास = इति + ह + आस
इतिहास में निम्न लिखित घटनाओ को सम्मिलित किया जाता हे
1 जो मानव जीवन को प्रभावित करे या भौगोलिक जीवन को प्रभावित करे।
2 जिसमे क्रमबद्धता हो।
3 जिसके साक्ष्य मौजूद हो, जो तीन प्रकार के होते हे -
इतिहास को हम निम्नलिखित 3 भागो में विभाजित कर सकते है ।
1 प्रागैतिहास - ज्ञात इतिहास से पूर्व का इतिहास या वह काल जिसके लिखित साक्ष्य मौजूद नहीं हे अर्थार्त किसी भी लिपि का उध्दरण नहीं हे केवल पुरातात्विक साक्ष्य ही मिलते है।
2 आद्य इतिहास - वह काल जिसके लिखित साक्ष्य तो मौजूद है परन्तु अब तक उन्हें पढ़ा नहीं जा सका है ।
3 इतिहास / आधुनिक / वर्तमान इतिहास - वह काल जिसके लिखित साक्ष्य मौजूद है और उन्हें पढ़ा जा चूका है ।
NOTE: 1842 में कर्नाटक के रायचूर जिले के लिंगसुगर नामक गाँव से कुछ पाषाण कालीन औजार प्राप्त किये गए हे इसी आधार पर प्रागैतिहासिक काल को निम्नलिखित रूप में विभाजित कर दिया गया।
प्राप्त औजारों की बनावट के आधार पर पाषाण काल को निम्न लिखित तीन भागो में विभाजित किया गया -
इस काल में आदिमानव की उत्पत्ति मानी जाती हे।
इस काल के दौरान आदिमानव की स्तिथि दयनीय थी तथा वह घुम्मकड़ जीवन व्यतीत करता था
इस काल में आदिमानव केवल शिकार करता था। शिकार करने हेतु उसने पत्थर से औजार बनाने प्रारम्भ किये
*अदिमानव ने सर्व प्रथम हस्तकुठार (hand exe) का निर्माण किया जो की अदि मानव का प्रथम औजार माना जाता है.
इस काल के दौरान आदिमानव ने समूह में रहना प्रारम्भ किया तथा पशुपालन भी प्रारम्भ कर दिया
सर्वप्रथम उसने कुत्ते को अपना पालतू जानवर बनाया
इस काल के औजारों का आकर छोटा था जिन्हे सूक्ष्मपाषाण (macroliths) कहा जाता था
इस काल में अदिमानव की स्तिथि यायावर थी तथा शिकार ही करता था।
इस काल के दौरान आदिमानव ने आग का आविष्कार किया
इसी काल में आदिमानव ने स्थायी बसावट प्रारम्भ की तथा कृषि करना भी प्रारम्भ किया।
पहिये का आविष्कार सबसे क्रन्तिकारी आविष्कार माना जाता है।
आदिमानव ने सर्वप्रथम ताम्बा धातु का प्रयोग किया तथा अनाज के भण्डारण हेतु उसने मृदभांडों का निर्माण किया
NOTE: नवपाषाण काल में आदिमानव उपभोक्ता के साथ साथ उत्पादक भी बन गया तथा वह खाद्य संग्राहक के रूप में विक्सित हुआ
NOTE: मध्यपाषाण काल को भारतीय इतिहास का संक्रमणकालीन चरण कहा जाता है।
वह काल जिसके लिखित साक्ष्य तो मौजूद है परन्तु अब तक उन्हें पढ़ा नहीं जा सका है। आद्यइतिहास काल में हम विशेष रूप से सिंधु सभ्यता और वैदिक सभ्यता का अध्ययन करते है। इस अध्याय में हम सिंधु घाटी सभ्यता के बारे मे जानेंगे। आद्यइतिहास काल का दूसरा चरण जो की वैदिक काल है उसे हम अगले अध्याय में पढ़ेंगे।
लिपि - ब्रुस्टोफेदन / सर्पिलाकार / गौमुत्री / भाव चित्रात्मक - इसमें 64 मूल चिन्ह है और सर्वाधिक अक्षर U आकर के मिले है । यह लिपि दाएं से बाएं और बाएं से दाएं (सर्पिलाकार) लिखी जाती थी। इस लिपि को विष्व में सबसे पहले पढ़ने का प्रयास वेडेन महोदय ने किया था लेकिन असफल रहे। इस लिपि को भारत में सबसे पहले पढ़ने का प्रयास श्री नटराज जी ने किया था लेकिन असफल रहे।
अब तक संसार में निम्नलिखित चार सभ्यताए हुई है।
1 – मेसोपोटामिया की सभ्यता- दजला व फरात नदी
2 – मिश्र की सभ्यता- निल नदी
3 - सिंधु सभ्यता - सिंधु नदी
4 - चीन की सभ्यता- व्हांग हो नदी
नामकरण - इस सभ्यता हेतु तीन नाम प्रयुक्त किये जाते हे:
1 सिंधु सभ्यता : यह नाम सर्वप्रथम jhon marshal के द्वारा दिया गया जो की इस सभ्यता के निर्देशक भी थे।
2 सिंधु घाटी सभ्यता : यह नाम डॉ.रफ़ीक़ मुघल द्वारा दिया गाया ।
3 हड्डपा :यहाँ इसका वर्तमान में प्रचलित नाम है जो की इसके प्रथम उत्खनित क्षेत्र के आधार पर रखा गया।
इस सभ्यता का विस्तार 3 देशो में मिलता है - भारत, पाकिस्तान व अफगानिस्तान
1 अफगानिस्तान – मुंडीगाक & शोर्तगोई (यह सिंधु घाटी सभ्यता के सबसे उत्तरतम बिंदु है)
2 बलोचिस्तान - मेहरगढ़, राणाघुड़ई, सुत्कांगेडोर, सुतकाकोह, क्वेटा घाटी, कुल्ला-कुल्ली, डाबरकोट
3 सिंध (पाकिस्तान) -अलीमुराद, मोहन-जो-दड़ो, आमरी, कोटदीजी, चन्हुदडो
4 पंजाब (पाकिस्तान) - रहमान ढेरी, ज़लीलपुर, हड्डपा, डेरा इस्माइल खान
5 पंजाब (भारत) - रोपड़, संघोल, चक-86, बाड़ा
6 हरियाणा - कुनाल, राखीगढ़ी, मित्ताथल, बनावली, भर्राना
7 राजस्थान - बालाथल, कालीबंगा
8 उत्तर प्रदेश - आलमगीरपुर, बड़ागांव, हुलास
9 गुजरात - लोथल, धोलावीरा, रंगपुर, रोजड़ी, देशलपुर, भगतराव, सुरकोटडा
1 - मार्शल के अनुसार :- 3250 ई. पू. - 2750 ई. पू.
2 - C-14 के अनुसार :- 2350 ई. पू. - 1750 ई. पू.
3 - डॉ. रोमिला थापर और डी. पि. अग्रवाल के अनुसार :- 2350 ई. पू. - 1750 ई. पू.
सैन्धव सभ्यता भारत की प्रथम नगरीय सभ्यता मानी जाती है। यहाँ कांस्य युगीन सभ्यता थी। इस सभ्यता में निम्न लिखित 4 प्रकार की प्रजातियां पायी जाती थी।
1 प्रोटो ऑस्ट्रेलियाइड
2 अल्पाइन
3 मंगोलियन
4 भूमध्य सागरीय (द्रविड़) | सर्वाधिक साक्ष्य इन्ही लोगो के प्राप्त हुए है | इन्हे सिंधु सभ्यता के निर्माता भी कहा जाता है
अब हम सैंधव सभ्यता के कुछ प्रमुख स्थलों की विशेष बातो का अध्यन करेंगे जो परीक्षा उपयोगी है। इन स्थलों के बारे में आप अच्छे से समज लीजिये और याद कर लीजिये |
हड्डपा के बारे में सर्वप्रथम जानकारी 1826 में चार्ल्स मेसन के द्वारा दी गयी। उसने अपने लेख में लिखा की भारत में एक हड्डपा नामक प्राचीनतम नगर है।
1856 में कराची से लाहौर रेलवे लाइन बिछाते समय जॉन बर्टन व विलियम बर्टन के आदेश से हड्डपा के टीले से कुछ ईटे निकाली गइ जिससे यहाँ छुपी हुई सभ्यता लोगो के सामने आयी।
यह नगर 2 भागो में विभाजित था -
1 - दुर्ग टीला (पश्चिमी टीला)
2 - नगर टीला (पूर्वी टीला)
* दुर्ग टीले को मार्टिन व्हीलर ने माउंट AB कहा है।
हड्डपा से निम्न लिखित चीज़े प्राप्त होती है -
6-6 की पंक्तियों में दो अन्नागार है। इस अन्नागार से गेहू व जौ के साक्ष्य मिलते है। दुर्ग टीले में श्रमिक आवास, मजदुर बैरक व प्रशासनिक वर्ग के लोगो के लिए भवन के साक्ष्य भी प्राप्त होते है।
हड्डपा का नगर नियोजन:
हड्डपा के नगर दो भागो में विभाजित थे लकिन धोलावीरा एक मात्र ऐसा स्थल है जो की 3 भागो में विभाजित था।
दुर्ग टीले में अन्नागार बने हुए होते थे। हड्डपा से प्राप्त अन्नागार सम्पूर्ण सैंधव सभ्यता की दूसरी सबसे बड़ी ईमारत है। (प्रथम सबसे बड़ी ईमारत लोथल का गोड़ीवाड़ा (बंदरगाह) है ) ।
हड्डपा नगर की सड़के एक दूसरे को समकोण पे काटती थी जिसे ऑक्सफ़ोर्ड सर्कस पद्दति या ग्रिड पैटर्न कहा जाता है। नगर का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की और होता था, जबकि मुख्य सड़क उत्तर से दक्षिण की और बानी हुई होती थी। यह मिटटी से निर्मित तथा 9 से 10 मीटर चौड़ी होती थी । नगर के घरो के दरवाजे एक दूसरे के आमने सामने गलियों में खुलते थे।
नगर टीले के दक्षिणी भाग में कब्रिस्तान बने हुए होते थे। हड्डपा से दो प्रकार के कब्रिस्तान के साक्ष्य मिलते है जिन्हे क्रमशः कब्रिस्तान H व R-37 कहा गया है।
NOTE: लोथल एक मात्र ऐसा स्थल था जिसके घरो के दरवाजे मुख्य सड़क की और खुलते थे।
अन्य अवशेष :
मोहन-जो-दड़ो की खोज 1922 में राखल दास बनर्जी के द्वारा की गयी थी यह सिंध प्रान्त के लरकाना जिले में स्थित है। मोहन-जो-दड़ो का शाब्दिक अर्थ मृतकों का टीला होता है। मोहन-जो-दड़ो की सबसे बड़ी सार्वजनिक ईमारत यहाँ से प्राप्त स्नानागार है जिसका धार्मिक महत्व था। जान मार्शल ने इसे तत्कालीन विश्व का आस्चर्यजनक निर्माण कहा है तथा इसे विराट वास्तु (ग्रेट बाथ) की संज्ञा दी है।
अन्य प्राप्त अवशेष :
NOTE : पशुपतिनाथ की मुद्रा जिसमे एक तीन मुख वाले देवता का अंकन किया गया है। जिसके चारो और हथी, भैसा, व्याघ्र, व बैल का अंकन मिलता है जिसे मार्शल महोदय ने आध्यतम शिव की संज्ञा दी है। Stuart Piggat ने मोहन-जो-दड़ो व हड़प्पा को किसी विशाल साम्राज्य की जुड़वाँ राजधानी कहा है।
यह भी सिंध प्रान्त में स्थित था जिसकी खोज 1931 में N. G. मजूमदार के द्वारा की गयी।
इसका उत्खनन 1935 में अर्नेस्ट मेके के द्वारा किया गया।
चन्हुदडो एक औद्योगिक नगर था। यहाँ से मनके बनाने का कारखाना, पीतल की इक्का गाड़ी , श्याही की दावत , हथी व गुड़िया का खिलौना, लिपिस्टिक के साक्ष्य, बिल्ली के पीछे भागते हुए कुत्ते के पदचिन्ह के साक्ष्य प्राप्त होते है। यहाँ से किसी भी प्रकार के दुर्ग के साक्ष्य नहीं मिले है।
यह भोगवा नदी के किनारे स्थित है जिसकी खोज 1953-54 में रंगनाथ राव के द्वारा की गयी यहाँ से चावल व बाजरे के प्रथम साक्ष्य और चक्की के दो पाट के साक्ष्य मिलते है।
यह एक औद्योगिक नगर था, जहा से मनके बनाने का कारखाना भी प्राप्त हुआ है।
यहाँ से बाट माप तोल पैमाना व हाथीदाँत पैमाना भी प्राप्त होता है।
लोथल का गोड़ीवाड़ा या बंदरगाह (dockyard) सम्पूर्ण सैंधव सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल मन जाता है।
लोथल से खोपड़ी की शैल्य चिकित्सा, तीन युगल शवादन, कौआ व लोमड़ी के साक्ष्य भी मिलते है।
लोथल से हवन कुंड या अग्नि कुंड के साक्ष्य भी मिलते है।
कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में घग्घर(प्राचीन सरस्वती) नदी के किनारे स्थित है, जिसकी खोज 1951-52 में अमलानंद घोष के द्वारा की गइ। कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ काली चुड़िया होता है। कालीबंगा का उत्खनन 1961 से 1969 के दौरान B. B. Lal व B. K. Thapar के द्वारा किया गया।
यहाँ से ऊट के साक्ष्य, मिटटी से बना हुआ हल व जुते हुए खेत के साक्ष्य प्राप्त हुआ है। IMPORTANT: पूरी सैंधव सभ्यता में लकड़ी से बना हुआ हल अभी तक कही से भी नहीं मिला है
कालीबंगा के लोग एक साथ दो फसल उगते थे अर्थात मिश्रित खेती के साक्ष्य मिलते है। कालीबंगा के प्रत्येक तीसरे घर से कुए के साक्ष्य मिलते है। कालीबंगा से कच्ची ईटो से निर्मित मकान के साक्ष्य मिले है अतः इसे दीनहीन की बस्ती कहा जाता था
सम्पूर्ण सैंधव सभ्यता में सर्वप्रथम खोपड़ी की शैल्य चिकित्सा के साक्ष्य कालीबंगा से ही प्राप्त होते है।
कालीबंगा में तीन प्रकार के शवदान के साक्ष्य प्राप्त होते है-
कालीबंगा से प्रथम भूकंप के साक्ष्य मिलते है, जो की लगभग 2100 इसा पूर्व के आस पास आया होगा।
यहाँ से अलंकृत फर्श व ईट के साक्ष्य मिलते है । सम्पूर्ण सैंधव सभ्यता में यह एक मात्रा ऐसा स्थल था जहा से बेलनाकार मोहरे प्राप्त हुई है। इस प्रकार की मोहरे मेसोपोटामिया में प्रचलित थी अतः विद्वानों के अनुसार कालीबंगा व मेसोपोटामिया के बिच व्यापारिक सम्बन्ध रहे होंगे
यहाँ से हवन कुंड के साक्ष्य भी मिलते है। लकड़ी की नालियों के साक्ष्य भी एकमात्र कालीबंगा से ही मिले है *IMPORTANT*
यह हरियाणा में प्राचीन सरवस्ती नदी के किनारे स्थित है, जिसकी खोज 1973-74 में R. S. Bisht ने की। यहाँ से उत्तम किस्म की जौ, तिल, सरसों व चावल की खेती के साक्ष्य मिलते है। मिटटी से बना हुआ हल भी प्राप्त हुआ है। मिट्टी से बने हुए बर्तन, ताम्बे के बाणाग्र, मातृ देवी की मृण मूर्ति, तथा एक मोहर के साक्ष्य भी प्राप्त हुए है।
NOTE : यह सम्पूर्ण सैंधव सभ्यता का एकमात्र ऐसा स्थल है जहा नालियों का आभाव पाया गया है।
यह गुजरात के कच्छ के राण में स्थित है जिसकी खोज 1964 में जगपति जोशी के द्वारा की गयी। सुरकोटड़ा एक मात्र ऐसा स्थल है जहा से सिंधु सभ्यता के पतन या विनाश के साक्ष्य मिलते है।
सैंधव सभ्यता का पतन नगर - सुरकोटड़ा
सैंधव सभ्यता का पातन / पत्तन नगर - लोथल
यहाँ से तराज़ू के दो पलड़े के साक्ष्य भी मिलते है
यहाँ से खुदाई के अंतिम चरण में घोड़े की अस्थिओं के साक्ष्य मिले है
धोलावीरा गुजरात में स्थित है तथा मानसर व मनहर नदियों के बिच में स्थित है इसकी खोज 1967-68 मै जगपति जोशी के द्वारा की गयी। धोलावीरा से विश्व के प्राचीनतम स्टेडियम के साक्ष्य प्राप्त होते है। तथा यहाँ से एक सुचना पट्ट भी प्राप्त हुआ है जिसपर सैंधव लिपि अंकित थी
धोलावीरा से नहर व जल संरक्षण के साक्ष्य भी प्राप्त होते है।
**भारत में खोजे गए स्थलों में धोलावीरा सबसे बड़ा नगर है, यह तीन भागो में विभाजित था
1 दुर्ग टीला
2 मध्यमा
3 नगर टीला
NOTE : सम्पूर्ण सैंधव सभ्यता में, सबसे बड़े नगरों के रूप में क्रमशः मोहन-जो-दड़ो > हड्डपा > गनेड़ीवाल > धोलावीरा > राखीगढ़ी ।
जबकि क्षेत्रफल की द्रष्टि से सबसे बड़े नगर क्रमशः गनेड़ीवाल > हड्डपा > मोहन-जो-दड़ो > धोलावीरा > राखीगढ़ी ।
धोलावीरा व राखीगढ़ी को राजधानी के रूप में माना गया जबकि डॉ दशरथ शर्मा ने कालीबंगा को सैंधव सभ्यता की तीसरी राजधानी बताया है ।
यह पंजाब में सतलज नदी के किनारे स्थित है। जिसकी खोज 1950 में B.B. Lal के द्वारा की गई जब की इसका व्यापक रूप से उत्खनन 1955-56 के दौरान यज्ञदत्त शर्मा के द्वारा करवाया गया।
रोपड़ से मानव के साथ कुत्ते के शवदान के साक्ष्य प्राप्त होते है।
NOTE: इस प्रकार के प्राचीनतम साक्ष्य नव पाषाणिक स्थल बुर्जहोम से मिलते है। बुर्जहोम में लोग गर्तावास में निवास करते थे।
यह हरियाणा के हिसार जिले में स्थित है। इसकी खोज डॉ रफीक मुग़ल के द्वारा की गयी। जबकि इसका उत्खनन 1997-98 के दौरान अम्रेन्द्रनाथ के द्वारा करवाया गया। राखीगढ़ी से मातृ देवी अंकित एक लघु मोहर प्राप्त हुई है।
*हरियाणा के कुणाल से चांदी के दो मुकुट प्राप्त होते है
*स्वतंत्र भारत में सर्वप्रथम 1947 में रंगपुर की खोज की गयी जबकि सर्वप्रथम उत्खनन रोपड़ का किया गया
* हाल ही में हरियाणा के भर्राना नामक स्थान से स्वर्ण आभूषण प्राप्त हुए है
* विश्व के प्रथम ज्वारीय बंदरगाह का निर्माण लोथल के वास्तुकारों के द्वारा किया गया।
* हरियाणा के नाल नामक स्थान से कपास की खेती के साक्ष्य मिले है
NOTE : सैंधव सभ्यता में सर्व प्रथम कपास की खेती करने का श्रेय यूनानियों को जाता है। जिसे इन्होने सिन्डन नाम दिया।
मोहन-जो-दड़ो,चन्हुदडो, कोटदीजी - सिंधु नदी
हड्डपा - रावी नदी
रंगपुर, रोजदी - मादर नदी
कालीबंगा, बनावली - प्राचीन सरस्वती नदी
रोपड़, बाड़ा - सतलज नदी
लोथल - भोगवा नदी
मंडा - चेनाब नदी
आलमगीरपुर - हिण्डन नदी
दैमाबाद - प्रवरा नदी
सोना : कर्नाटक, फारस, ईरान
चांदी : बलोचिस्तान, फारस, अफगानिस्तान
ताम्बा : खेतड़ी, फारस
सेलखड़ी : राजस्थान, गुजरात, बलोचिस्तान
नील रत्न : बदख्शा (अफगानिस्तान)
1 मातृदेवी की उपासना : सम्पूर्ण सैंधव सभ्यता में मातृदेवी की मृण्मूर्तिया प्राप्त हुई है। आग में पकी हुई मृदभांडों को टेराकोटा कहा जाता है।
2 मातृ सत्तात्मक परिवार सैंधव सभ्यता की देन है
3 पशुपतिनाथ की पूजा जिसे मार्शल ने आध्यतम शिव कहा इसी मोहोर पर भारतीय चित्रकला के प्रथम साक्ष्य मिले है।
**भारतीय चित्रकला के प्राचीनतम साक्ष्य भीमबेटका से प्राप्त हुए है। **
4 लिंग व योनि की पूजा, सवस्तिक का चिन्ह, सूर्य उपासना सैंधव सभ्यता की देन है।
5 सर्वप्रथम चाक का प्रयोग सैंधव सभ्यता में किया गया है। इस काल के दौरान लाल व काले रंग के मृदभांड बनाये गए।
6 सैंधव सभ्यता के लोग तलवार, गाय व घोड़े से परिचित नहीं थे। यहा से किसी भी प्रकार के वर्ग संघर्ष के साक्ष्य नहीं मिलते है
7 सैंधव सभ्यता के किसी भी स्थान से मंदिर के साक्ष्य नहीं मिले है।
8 चावल के प्राचीनतम साक्ष्य कोल्डिहवा से प्राप्त हुए है। चावल के प्रथम साक्ष्य - लोथल। जले हुए चावल के साक्ष्य - कालीबंगा
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट 2020 में पांच पुरातात्विक स्थलों के विकास का ऐलान किया है जो निम्नलिखित है :-
1 हरियाणा का राखीगढ़ी
2 महाभारत काल का हस्तिनापुर (उत्तर प्रदेश)
3 शिवसागर (असम)
4 धोलावीरा (गुजरात)
5 आदिचनल्लूर (तमिलनाडु)
इस अध्याय में हमने सिंधु घाटी सभ्यता के बारे मे जाना। आद्यइतिहास काल का दूसरा चरण जो की वैदिक काल है उसे हम अगले अध्याय में पढ़ेंगे।
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