पृष्टभूमि : अरब देश में इस्लाम धर्म की स्थापना मोहम्मद हजरत के द्वारा की गयी। इनका जन्म 570 ई. में हुआ। इनके पिता का नाम अब्दुल्ला माता का नाम अमीना। तथा पुत्री का नाम फातिमा तथा दामाद का नाम अली था। हजरत मोहम्मद को 612 ई. में ज्ञान की प्राप्ति हुई। इन्होने 622 ई. में हिजरी सम्वत की स्थापना की। यह इन्होने मक्का से मदीना जाने के उपलक्ष में चलाया। 632 ई. में इनकी मृत्यु हो गई। मृत्यु होने के साथ ही। इस्लाम धर्म 2 भागो में विभाजित हो गया - शिया व सुन्नी।
सर्वप्रथम सुन्नी संप्रदाय के लोगो ने अबूबक्र को अपना खलीफा नियुक्त किया तथा शिया सम्बंधित लोगो ने मोहोम्मद साहब के दामाद अली को अपना खलीफा नियुक्त किया।
671 ई. में खलीफा के पद का राजनैतिकरण कर दिया गया। इस्लाम धर्म के सर्वोच्च प्रमुख को खलीफा कहा जाने लगा।
कारण : अरब ईरान के प्रांतपाल अल हज्जाज व वहा के खलीफा वालिद को श्रीलंका के शासको ने 8 जहाज रत्न आभूषणों से भर कर भेजे जिन्हे देवल थट्टा के समुंद्री किनारे पर लुटेरों द्वारा लूट लिया गया। इसपर सिंध के शासक दाहिर सेन ने कोई कार्यवाही नहीं की।
भारत पर सर्वप्रथम अरब आक्रमणकारियों ने आक्रमण किये, यह पहले मुस्लिम थे।
सिंध का शासक रायसहस जो की एक शूद्र था, इसकी हत्या एक चच नामक ब्राह्मण ने की तथा ब्राह्मणाबाद नामक नगर बसाया और सिंध पर एक हिन्दू साम्राज्य की स्थापना की। सिंध की राजधानी आलोर जो की वर्त्तमान में रहिरा है। दाहिर द्वारा अलहज्जाज को समुद्री लुटेरों पर कार्यवाही करने से मना करने के बाद हज्जाज ने दाहिर के उप्पर दो बार आक्रमण किये परन्तु वह सफल नहीं हो सका।
NOTE: अल हज्जाज ईरान का प्रांतपाल था तथा उस समय अरब का खलीफा वालिद था इन दोनों के कहने पर ही 711 ई. में मोहम्मद बिन कासिम ने सर्वप्रथम देवल पर आक्रमण किया।
712 ई. में मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध के शासक दाहिर पर आक्रमण किया। इस आक्रमण में दाहिर की मृत्यु हुई तथा दाहिर की विधवा पत्नी रानी बाई ने अग्नि का वरण करलिया जो की मध्यकालीन भारत का प्रथम जोहर माना जाता है। कासिम ने रवार का युद्ध जितने के बाद दाहिर के पुत्र जय सिंह पर आक्रमण किया वह भाग निकला। किले में उपस्तिथ दाहिर की दूसरी पत्नी लाडोदेवी व उसकी दो पुत्रियों सूर्या देवी व पारमल देवी को बंधक बना लिया। इन दोनों पुत्रियों को कासिम ने बाद में खलीफा वालिद की सेवा में भेज दिया। वालिद ने इन दोनों के बहकावे में आकर कासिम को मृत्यु दंड दे दिया। इस समस्त घटना का विवरण चचनामा में मिलता है।
NOTE : चचनामा की रचना कासिम के किसी अज्ञात सैनिक के द्वारा की गयी परन्तु इसका बाद में फ़ारसी भाषा में अनुवाद - मु. अली बिन अबू बक्र काफी ने किया। तथा इसका अंग्रेजी भाषा में अनुवाद U. M. Dawood Pota ने किया।
713 ई. में कासिम ने मुल्तान के उप्पर आक्रमण किया इस मुल्तान आक्रमण से उसे बहुत अधिक मात्रा में सोना प्राप्त हुआ। अतः उसने मुल्तान का नाम बदलकर सोने का नगर रख दिया।
कासिम ने सिंध विजय के बाद। जजिया कर लगाया तथा दिरहम नामक एक नयी मुद्रा प्रचलित की। जजिया कर ब्राह्मण, स्त्रियों, अनाथ बालको व अपांग लोगो से नहीं वसूला जाता था। भारत में खजूर की खेती व ऊट अरबो की देन है
कारण: भारत की अतुल दौलत को लूटना
कब: 10 वी शताब्दी में
कौन: सुबक्तगीन , गजनी, गौरी
कहाँ से: गजनी (अफगानिस्तान)
संस्थापक: अलप्तगीन 962 ई.
यह अलप्तगीन का गुलाम था जिसने 977 ई. में यामिनी वंश की स्थापना की, एवं गजनी की राजगद्दी पर बैठा।
पंजाब के शासक जयपाल ने 986-87 ई. में एक विशाल सेना लेकर सुबक्तगीन पर आक्रमण किया परन्तु वह पराजित हो गया और संधि कर के पुनः पंजाब लौट आया।
पंजाब लौटने के बाद उसने संधि का उल्लंघन किया क्युकी अजमेर दिल्ली व कालिंजर के शासको ने जयपाल को युद्ध में सहयोग देने का वायदा किया। इस पर सुबक्तगीन ने अपनी विशाल सेना लेकर जयपाल पर आक्रमण किया और इन चारो शासको की संयुक्त सेना पराजित कर लिया। एक बार पुनः संधि हुई तथा संधि के फल स्वरुप पेशावर व लगमान के क्षेत्र सुबुक्तगीन को दिए गए। 998 ई. में सुबक्तगीन की मृत्यु हो गयी।
सुबक्तगीन ने अपने बड़े पुत्र स्माइल को राजगद्दी पर बिठाया परन्तु महमूद ने स्माइल को मार डाला और स्वयं शासक बन बैठा।
जन्म : 1 नवंबर 971
उपाधि : यामीन-उल-दौला (साम्राज्य का दाहिना हाथ), यामीन-उल-उल्ला (मुस्लिमो का संरक्षक)
पहला ऐसा तुर्क शासक जिसने भारत पर कुल 17 बार आक्रमण किया। इरफ़ान हबीब ने लिखा हे की उसका उद्देश्य केवल धन लूटना था। न की साम्राज्य विस्तार करना। गजनवी के आक्रमण के समय सिंध व मुल्तान पर अब्दुल फ़तेह दाऊद का शासन था
गजनवी ने निम्न आक्रमण किये
NOTE : सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण चालुक्य शासक भीमपाल प्रथम द्वारा 1026 में करवाया गया। इसके बाद इसी वंश के शासक कुमारपाल द्वारा 1196 में पुनर्निर्माण किया। 1765 के ब्रिटिश साम्राज्य में अहिल्याबाई होल्कर पुनर्निर्माण ने करवाया। 1950 (स्वतंत्र भारत) में सरदार पटेल ने इसका पुनर्निर्माण करवाया।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य :
महमूद गजनवी का समकालीन इतिहासकार अलबरूनी था जिसने अरबी भाषा में किताब-उल-हिन्द की रचना की। जिसमे इतिहास भूगोल विज्ञान व गणित का वर्णन मिलता है।
अलबरूनी प्रथम ऐसा मुस्लिम था जिसने पुराणों का अध्ययन किया
मध्य काल में सुलतान की उपाधि धारण करने वाला प्रथम शासक महमूद गजनवी था। गजनवी को बूत-शिकन (मुर्तिया तोड़ने वाला) कहा जाता है।
गजनवी के आक्रमण का सबसे बड़ा परिणाम यह हुआ की पंजाब स्थायी रूप से तुर्को के अधिकार में चला गया।
गजनी वंश का अंतिम शासक खुशरव महमूद था जिसे 1192 ई. में गौरी ने कैद किया और मार डाला।
गजनी वंश के पतन के बाद एक नविन राजवंश का उदय हुआ। जिसे गौर वंश कहा जाता है। यह क्षेत्र गजनी व हैरत के बिच का पहाड़ी क्षेत्र था। यहाँ के निवासी गौरी कहलाते थे। 1155 ई. में अलाउद्दीन हुसैन ने गजनी पर आक्रमण कर उसे बुरी तरह से लुटा तथा गजनी में आग लगा दी। इसी कारन उसे जहाँ-सौज (विष्व को जलने वाला कहा जाता है।)
1163 में गयासुद्दीन मुहम्मद बिन साम ने गजनी के पास एक स्वतंत्र गौर राज्य की स्थापना की। इसने 1173 में गजनी में बचे हुए तुर्को को भगा दिया। तथा गजनी का शासक अपने भाई मजुइद्दीन शिहाबुद्दीन मुहम्मद बिन साम को गजनी का शासक बना दिया। यही शिहाबुद्दीन आगे चल कर मोहम्मद गौरी के नाम से विख्यात हुआ।
ने 1175 में भारत के मुल्तान पर आक्रमण किया यह इसका भारत पर प्रथम आक्रमण था। भारत पर आक्रमण का उद्देश्य साम्राज्य विस्तार था।
1176 ई. में उच्छ (सिंध) पर आक्रमण किया और विजय प्राप्त की।
1178 ई. गुजरात (अबू का युद्ध) : शासक भीम देव II / मूलराज द्वितीय - इन्होने अपनी माता नायका देवी के नेतृत्व में युद्ध लड़ा और गौरी को बुरी तरह से पराजित किया। भारत में यह गौरी की प्रथम हार थी।
गौरी ने 1179 ई. , 1181 ई. , 1189 ई. , में क्रमशः पेशावर लाहौर व भटिंडा पर आक्रमण किया तथा विजय प्राप्त की।
तराइन का प्रथम युद्ध 1991 ई. : तराइन भटिंडा व थानेश्वर पड़ता है। यह युद्ध पृथ्वीराज तृतीय व मोहम्मद गौरी के बिच लड़ी गई। पृथ्वीराज विजयी रहा।
तराइन का द्वितीय युद्ध 1992 ई. : पृथ्वीराज तृतीय व गौरी के बिच - गौरी विजयी रहा।
इस युद्ध से पूर्व, गौरी ने अपने राजदूत के रूप में किवाम- उल-मुल्क को भेजा ताकि पृथ्वीराज को अधीनता स्वीकार करवाई जाये। इस युद्ध के समय गौरी की सेना के साथ ख्वाजा मोईनुद्दीन चिस्ती भारत आए और भारत में चिस्ती संप्रदाय की स्थापना करी। इस युद्ध ने भारत पर तुर्की सत्ता की नीव दाल ली।
चंदवार का युद्ध 1194 : कन्नौज के शासक जयचंद गहड़वाल को गौरी ने पराजित किया और मार डाला। भारत में गौरी को तुर्की(मुस्लिम) साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
NOTE : गहड़वाल के कहने पर ही गौरी ने पृथ्वीराज पर आक्रमण किया था।
NOTE : चंदवार के युद्ध के बाद गौरी ने अपनी सेना का नेतृत्व कुतुबुद्दीन ऐबक (गुलाम) को सौपा तथा इंद्रप्रस्थ से मध्य ऐशिया चला गया।
अंतिम समय में खोखरो ने विद्रोह किया जिसे दबाने के लिए गौरी पुनः भारत आया परन्तु वापस गजनी जाते समय 15 - मार्च - 1206 को इसे जाटो ने सिंधु नदी के किनारे देयमक नामक स्थान पर मार डाला।
गौरी कहता था की किसी सुल्तान की एक या दो संतान हो सकती है परन्तु मेरे हजारो-लाखो संताने है, जो की मेरे तुर्की गुलाम है, मेरे मरने के बाद ये मेरे नाम का खुतबा पढ़ेंगे।
गौरी के सिक्को पर एक तरफ लक्ष्मी का अकन तथा दूसरी तरफ कलमा छापा हुआ होता था। इस प्रकार के सिक्के को देहलीवाल का सिक्का कहा जाता था।
(1206 ई. - 1526 ई.)
चंदवार के युद्ध के बाद गौरी ने इसे अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। अतः गौरी की मृत्यु के बाद जून 1206 में लाहौर के स्थानीय लोगो के अनुरोध पर गद्दी पर बैठा, तथा लाहौर को ही अपनी राजधानी बनाया। ऐबक के माता पिता तुर्किस्तान के तुर्क थे। ऐबक का शाब्दिक अर्थ चन्द्रमा का स्वामी होता था।
ऐबक की निम्न लिखित उपाधिया थी
ऐबक ने सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की बल्कि उसने मलिक व सिपहसलार की उपाधि के साथ ही संचालित किया। 1208 में गयासुद्दीन ने ऐबक को दासता से मुक्त कर दिया।
ऐबक ने दिल्ली में कुवैत-उल-इस्लाम नामक मस्जिद का निर्माण करवाया जो की भारत में प्रथम मुस्लिम मस्जित मानी जाती है। इसने ढाई दिन के झोपड़े का निर्माण करवाया।
इसने ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर क़ुतुब मीनार का निर्माण करवाया जो की 5 मंजिला ईमारत थी। प्रथम मंजिल का निर्माण कुतुबुद्दीन द्वारा, दूसरी से चौथी का इल्तुतमिश के द्वारा व पांचवी का फ़िरोज़ शाह तुगलक के द्वारा करवाया गया।
ऐबक ने दिल्ली के किले के पास राय पिथोरा नामक एक नगर बसाया जो की मध्य काल में निर्मित प्रथम नगर माना जाता है।
इसकी मृत्यु 1210 में चौगान खेलते हुए। घोड़े से गिर कर हो गयी।
कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद आराम शाह शासक बना परन्तु वह अयोग्य था। इसी कारण उसे पराजित कर ऐबक का गुलाम शमशुद्दीन इल्तुतमिश गद्दी पर बैठा। अतः इल्तुतमिश को गुलामो का गुलाम कहा जाता है।
इल्तुतमिश "इल्बारी तुर्क" था। ऐबक ने ग्वालियर पर विजय प्राप्त करने के उपरांत इसे ग्वालियर का सूबेदार नियुक्त किया था। तथा बाद में इसे बदायू का सूबेदार बना दिया गया। अतः सुल्तान बनने से पूर्व वह बदायू का सूबेदार था।
सर्वप्रथम इसने अपनी राजधानी को, लाहौर से दिल्ली स्थानांतरित किया। अतः इसे दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
इसने बगदाद के खलीफा बिल्ला मंसूरी से वैधानिक पत्र प्राप्त किया तथा उसके नाम के सिक्के चलवाये। अतः इल्तुतमिश दिल्ली का प्रथम वैधानिक और सम्प्रभुता संपन्न सुल्तान बना
इसकी उपाधिया -
इल्तुतमिश के विरोधी -
NOTE : 1221 में मंगोल आक्रांता चंगेज खा ने ख्वारिज्म शाह पर आक्रमण किया और उसे पराजित कर दिया। शाह का पुत्र जलालुद्दीन मंगबर्नी गजनी से अपनी जान बचा कर भारत भाग आया। उसने इल्तुतमिश से शरण मांगी परन्तु इल्तुतमिश ने भारत को मंगोल आक्रमण से बचने के लिए उसे शरण देने से मना कर दिया। चंगेज खान मंगबर्नी का पीछा करते हुए सिंधु नदी के तट तक पहूच गया। परन्तु भारत पर आक्रमण नहीं किया।
NOTE : चंगेज खा का मूल नाम तमूजिन अर्थात लोहकर्मी था। यह अपने आप को ईश्वर का अभिशाप कहने पर गर्व महसूस करता था। वह इल्तुतमिश का समकालीन था।
1226 ई. इसने रणथम्बोर व जालोर के चौहानो को पराजित किया। इसके बाद इसने क्रमशः। बयाना, नागौर, सांभर, व अजमेर के उप्पर भी अधिकार कर लिया।
उसने 1234-35 ई. के दौरान भिलसा (मप्र) के हिन्दू मंदिरो को तोड़ा। तथा उज्जैन के महाकाल मंदिर को भी लूट लिया।
प्रशासन सुधार :
इल्तुतमिश ने इक्ता प्रणाली चलाई थी।
शासन को सुचलित रूप से संचालित करने हेतु अपने चालीस वफादार गुलामो का एक समूह बनाया। जिसे बरनी ने "गुलाम चालीसा" या तुरकन-ए-चालीसा(चहलगनी)
Important : प्रथम तुर्क शासक था जिसने शुद्ध अरबी सिक्के चलाये तथा सिक्के पर टकसाल का नाम लिखना अनिवार्य करदिया।
दो प्रकार के सिक्के चलाए:
NOTE : ग्वालियर विजय के बाद इल्तुतमिश ने अपनी पुत्री रजिया का नाम चाँदी के टंके पर अंकित करवाया और उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। इल्तुतमिश के महल के आगे संगमरमर के दो शेरो की मूर्ति लगी थी। तथा इनके गले में घंटी बंधी हुई होती थी, जिसे बजने पर फरियादी को तुरंत न्याय मिलता था।
इल्तुतमिश के निर्माण कार्य :
1236 में बामयान (बनयान) अभियान पर अचानक इसकी तबियत ख़राब हो गयी यह पुनः दिल्ली लौट आया। और वही उसकी मृत्यु हो गयी। इल्तुतमिश का मकबरा दिल्ली में बनाया गया। स्क्रीच शैली (इंडो + ईरानी) में निर्मित भारत का यह प्रथम मकबरा माना जाता है।
इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद अमीरो ने इल्तुतमिश के छोटे बेटे रुकनुद्दीन को शासक बना दिया, जो की अयोग्य शासक था। शासन की बागडोर वास्तविक रूप से तुर्कान शाह के हाथो में थी, जो की तनाशाह महिला थी। रजिया सुल्ताना ने शुक्रवार की नमाज़ के दिन लाल वस्त्र पहन कर तुरकन शाह के विरुद्ध लोगो से सहायता मांगी। लोगो ने रज़िया को सुल्ताना बना दिया।
रज़िया को लोगो का समर्थन प्राप्त था लेकिन बदायू व लाहौर के गवर्नर इसके विरोधी थे सबसे बड़ा विरोधी इल्तुतमिश का वज़ीर मौहम्मद जुनैदी था। रज़िया के समय सुल्तान व तुर्क आमीरो के बिच संगर्ष प्रारम्भ हुआ जो की बलबन के सत्तारूढ़ होने तक चला।
रज़िया सुल्ताना राजगद्दी पर बैठते समय पुरुषो के परिधान (कुबा व कुलाह) पहन कर बैठती थी।
रज़िया ने तुर्को को अपने पक्ष में करने के लिए शक्तिशाली तुर्क अल्तुनिया से विवाह किया परन्तु अल्तुनिया व रज़िया दोनों की हत्या 1240 में कैथल हरियाणा में कर दी गयी।
रज़िया सुल्ताना को भारत में मुस्लिम इतिहास की प्रथम सुल्ताना माना जाता है। इसने उमदत-उल-निस्वा की उपाधि धारण की थी।
1241 में मंगोलो का आक्रमण हुआ।
इसने नायब-ए-मुमलक का पद सृजित किया।
1242 में इसकी हत्या कर दी गयी।
यह रुकनुद्दीन का पुत्र था। इसने अपनी समस्त शक्तिया चालीसा समूह को सौप दी।
यह इल्तुतमिश पोता था बलबन के सहयोग से मसूद शाह को पराजित कर दिया और स्वयं शासक बन गया, परतु वास्तविक शक्तिया बलबन के हाथो में थी, क्युकी बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह नासीरुद्दीन महमूद के साथ किया। महमूद ने बलबन को उलुग खाँ की उपाधि दी। नासीरुद्दीन महमूद धार्मिक प्रवर्ति का व्यक्ति था। वह खली समय में कुरान की नक़ल करता था।
1265 में महमूद की मृत्यु हो गयी, और बलबन शासक बना
बलबन का मूल नाम बहुदीन था। यह भी इल्तुतमिश की भाती इल्बारी तुर्क था। शासक बनने से पूर्व उसने महमूद के वज़ीर के रूप में बिस वर्ष तक कार्य किया। इस दौरान वह सुलतान न होते हुए भी सुल्तान के छत्र का प्रयोग करता था।
बलबन का राजत्व का सिद्धांत लोह एवं रक्त निति पर आधारित था। इसके अनुसार सुल्तान संसार में ईश्वर का प्रतिनिधि होता है तथा उसमे देवत्व का अंश होता है उसकी समानता कोई नहीं कर सकता
बलबन ने सुल्तान की प्रतिष्ठा बढ़ाने हेतु चालीसा का दमन बड़े क्रूर तरीके से किया। उसने बदायू के गवर्नर बकबक खाँ को जनता के सामने लोगो से पिटवाया तथा कोड़े लगवाए। अवध के गवर्नर हैवत खाँ को भी कोड़े लगवाए। और बंगाल के अमिन खाँ को अवध के फाटक पर लटकवा दिया।
बलबन ने अपने पद की प्रतिष्ठा बढ़ने के लिए दरबार में कुछ गैर इस्लामिक प्रथाएं शुरू की। जैसे सिजदा, पबौस(पायबोस) तथा फ़ारसी उत्सव नवरोज को मनाना प्रारम्भ किया।
बलबन ने सैनिको को दी हुई जगीरो की जांच करवाई तथा अयोग्य व वृद्ध सैनिको को पैंशन देकर सेवा से मुक्त कर दिया
सामंतो की गतिविधियों पर ध्यान रखने हेतु उसने दीवान-ए-बरिद नामक नए गुप्तचर विभाग की स्थापना की.
मंगोलो के आक्रमण से बचने के लिए। इसने उत्तरी पश्चिमी सिमा पर किलो की एक श्रृंखला बनवा दी तथा बलबन ने सम्पूर्ण सीमांत प्रदेशो को दो भागो में विभाजित कर दिया।
अमीर खुसरो (तोता-ए-हिन्द) व हसन देहलवी (भारत का सादी) ने अपना साहित्यिक जीवन महमूद खाँ के शासन काल के दौरान किया।
मध्यकाल के दौरान अमीर खुसरो व हसन देहलवी दोनों ही निजामुद्दीन ओलिया के शिष्य थे। ऐसा माना जाता है की निजामुद्दीन ओलिया ने मध्यकालीन भारत के दौरान दिल्ली सल्तनत के 7 शासको का शासन काल देखा व खुसरो ने 8 शासको का शासन काल देखा।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य :
अपने पुत्र महमूद की मृत्यु के कारण बलबन इतना टूट गया की वह उसकी मृत्यु का कारण बना।
बलबन की मृत्यु पर इतिहासकारो ने लिखा हे की लोगो ने अपने कपडे फाड़ डाले। तथा सुल्तान के शव को कब्रिस्तान ले जाते समय अपनी सर पर धूल फेकि, तथा 40 दिन तक बिना बिस्तर के जमीं पर सोए।
बलबन साधारण(गरीब) व तुच्छ व्यक्तियों से नहीं मिलता था। वह कहता था की जब में गरीब व्यक्ति को देखता हु तो मेरे शरीर की प्रत्येक नाड़ी क्रोध से उत्तेजित हो जाती है।
बलबन प्रथम भारतीय मुसलमान शासक था। जिसने अपने आप को जिल्ले इलाही की उपाधि दी।
1279 ई. में बलबन ने ख्वाजा नामक अधिकारी की नियुक्ति की जो की इक्तेदारो पर नियंत्रण रखता था।
बलबन की मृत्यु के बाद उसका अयोग्य (पोता) पौत्र कैकुबाद उत्तराधिकारी बना जिसे लकवा हो जाने पर अमीरो ने कैकुबाद के पुत्र शम्सुद्दीन क्यूमर्स जो की शिशु ही था को गद्दी पर बिठाया, क्युकी बूगरा खाँ केवल सूबेदारी से ही संतुष्ट था।
जलालुद्दीन फिरोज खिलजी जो की कैकुबाद का वज़ीर था, इसने सबसे पहले कैकुबाद उसके बाद उसके पुत्र क्यूमर्स की हत्या कर दिल्ली सल्तनत पर खिलजी राज वंश की स्थापना की
खिलजी वंश का संस्थापक जलालुद्दीन फ़िरोज़ खिलजी था। खिलजी काल को खिलजी क्रांति के नाम से भी जाना जाता है।
कैकुबाद की हत्या करने के बाद इसने किलोखरी के किले (दिल्ली) में अपना राज्याभिषेक करवाया।
उपाधि : शाइस्ता खाँ (कैकुबाद द्वारा दी गयी)
उपलब्धिया : किलोखरी को अपनी राजधानी बनाया। 70 वर्ष की आयु में शासक बना ( सबसे वृद्ध शासक था )
शासन निति : आंतरिक निति (सबको प्रसन्न रखने की निति)
बलबन के एक रिश्तेदार मालिक छज्जू ने इसके खिलाफ विद्रोह किया। जलालुद्दीन ने अलाउद्दीन खिलजी को विद्रोह दबाने के लिए मनिकपुर भेजा अलाउद्दीन खिलजी ने छज्जू को पराजित कर दिया। परन्तु फिरोज ने उसे माफ़ करदिया।
NOTE: अलाउद्दीन का पहेली बार उल्लेख इसी अभियान में मिलता है। इस अभियान के बाद जलाल ने अल्लाउद्दीन खिलजी को मनिकपुर का सूबेदार बनाया।
जलाल ने ईरान के उलेमा सादीमौला को हाथियों के पैरो से कुचलवा कर मरवा डाला
जलालुद्दीन कहता था की मुसलमानो का रक्त बहाना उसके उसूलो के खिलाफ है।
जलालउद्दीन खिलजी के काल में मंगोलो का आक्रमण 1292 ई. में हुआ। यह आक्रमण अब्दुल्ला ने पंजाब के उप्पर किया जिसे अलाउद्दीन खिलजी ने पराजित कर दिया।
जल्लालुद्दीन फिरोज खिलजी ने मंगोलो को भी उदारता दिखाई, उसने चंगेज खां के वंशज उलुग खां के साथ अपनी बेटी का विवाह कर दिया। उलुग खा अपने 4000 साथियो के साथ दिल्ली और गुजरात के आसपास के क्षेत्रों में आकर बस गया, जिन्हे नविन मुस्लमान कहा जाता है।
1291 ई. रणथम्बोर आक्रमण:
शासक - हम्मीर देव , जलालुद्दीन खिलजी ने एक साल तक घेरा डाला अंत में जलाल व हम्मीर के बिच झाईन का युद्ध हुआ जिसमे जलालुद्दीन पराजित हुआ। जलालुद्दीन ने कहा की "मुस्लमान के सर के एक बाल की कीमत ऐसे 100 किलों से ज्यादा समजता हु"।
1292 ई. में मंडोर जोधपुर को जीता तथा इसे दिल्ली सल्तनत में मिला दिया गया।
1294 ई. में जलालुद्दीन ने अलाउद्दीन खिलजी को मालवा व भिलसा के अभियान पर भेजा। अलाउद्दीन सफल रहा। अलाउद्दीन ने उज्जैन धारानगरी के मंदिरो को लुटा व तुड़वा दिया।
1294 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने जलालुद्दीन की अनुमति लिए बिना देवगिरि (महाराष्ट्र) के शासक रामचंद्र यादव पर आक्रमण किया, और बेशुमार धन लुटा। जलाल के विष्वास पात्रो ने जलाल को पत्र लिख कर कहा की अलाउद्दीन खिलजी विशवासघाती है, उससे यह धन छीन लिया जाए।
NOTE: अलाउद्दीन खिलजी मध्य काल के दौरान प्रथम ऐसा शासक था। जिसने जलाल के शासन में पहेली बार दक्षिण भारत का अभियान किया।
1296 ई. में अलाउद्दीन ने अपने विश्वास पात्र इख़्तियार हुद की सहायता से जलालुद्दीन को मार डाला।
अलाउद्दीन खिलजी ने जलाल के पुत्र अर्कली खां व उसके समस्त परिवार को मोत के घाट उतार दिया। जलालुद्दीन की विधवा पत्नी मलिका-ए-जहान ने अपने पुत्र कद्र खां को रुकनुद्दीन इब्राहिम के नाम से सुल्तान घोषित कर दिया परन्तु अलाउद्दीन ने इन्हे भी मार डाला।
इतिहास कार बरनी ने कहा की शहीद सुल्तान के चंदोबे(मुकुट) से अभी रक्त की बुँदे टपक ही रही थी की अलाउद्दीन ने खून टपकते हुए चंदोबे को अपने सिर पर धारण किया और अपने आप को सुल्तान घोषित कर दिया।
जोधपुर के संस्कृत शिलालेख (ताम्रपत्र) में कहा गया है की, अलाउद्दीन के देवतुल्य शौर्य से यह धरती काँप उठी।
इसकी उपाधिया :
राज्याभिषेक : बलबन के लाल महल में
सुल्तान बनने से पूर्व यह कड़ा का सूबेदार था। अलाउद्दीन के शासन काल में मंगोलो के सर्वाधिक 7 बार आक्रमण हुए
अल्लाउद्दीन खिलजी के अभियान :
गुजरात अभियान (1299 ई.): अल्लाउद्दीन ने अपने 2 सेनापतियों उलुग खां व नुसरत खां को सेनापति बना कर गुजरात के शासक कर्ण बघेल के खिलाफ यह अभियान किया। बघेल अपनी पुत्री देवल के साथ देवगिरि भाग गया। बघेल की पत्नी कमला देवी दोनों सेनापतिओ को मिली, जिसे उन्होंने अलाउद्दीन को सौप दिया। अलाउद्दीन ने कमला देवी के साथ विवाह किया। यह उसकी सबसे प्रिय रानी बानी।
गुजरात अभियान के दौरान ही नुसरत खाँ ने मालिक काफूर को जो की एक हिन्दू था, 1 हजार दीनार में ख़रीदा अर्थात काफूर को 1000 दिनारी कहा जाता है।
जैसलमेर अभियान 1299 ई. : अलाउद्दीन ने राव दुधा व उसके सहियोगी तिलक सिंह को पराजित किया।
रणथम्बोर आक्रमण 1301 ई. : शासक हम्मीर देव को पराजित किया। इस अभियान के दौरान उलुग खान व नुसरत खाँ सेनापति थे। नुसरत को हम्मीर ने मार डाला। हम्मीर की पत्नी रंग देवी ने राजपूत महिलाओ के साथ अग्नि जोहर किया। हम्मीर की पुत्री देवल दे ने पद्मला तालाब में कूद कर जल जोहर किया।
NOTE: रणथम्बोर जोहर फ़ारसी साहित्य में उल्लेखित प्रथम जोहर है। अमिर खुसरो के तारीख-ए-अलाइ (खजाइन-उल-फुतुह) में इसका उल्लेख मिलता है।
हम्मीर के 2 विद्रोही रणमल व रतिपाल को अल्लाउद्दीन खिलजी ने मार डाला।
चित्तौड़ अभियान - 1303 ई. : शासक : रावल रतन सिंह
कारण : सामरिक महत्व + पद्मिनी का अद्भुत सौन्दर्य
एक माह तक किले का घेरा डाला। फिर रतन सिंह को बंदी बना लिया। गोरा व बदल ने वापस छुड़ाया। परन्तु स्वयं शहीद हो गए। पद्मिनी ने 16000 राजपूत महिलाओ के साथ जोहर कर लिया। अलाउदीन ने 30000 राजपूतो को मौत के घाट उतर दिया।
चित्तोड़ किले का नाम अपने पुत्र खिज्र खाँ के नाम पर खिज्राबाद रखा तथा उसे वहा का शासक नियुक्त किया। स्वयं दिल्ली लौट आया। कुछ समय बाद ख़िज्र खाँ को वापिस दिल्ली बुलाया और राजपूत शासक मालदेव को वहा का प्रशासन सौपा।
NOTE: अमीर खुसरो इस अभियान में साथ मे था तथा उसने पद्मिनी के जोहार का उल्लेख अपने ग्रन्थ खुजाइन-उल-फुतुह में किया, जिसे बाद में 1540 में मालिक मोहम्मद जायसी ने अपने ग्रन्थ पद्मावत में भी लिखा।
सौख (मथुरा) अभियान 1304 : अलाउद्दीन खिलजी ने सौख के शासक नाहर सिंह व उसके सहयोगी अनंगपाल जाट को पराजित किया। तथा बृजभूमि के अनेक हिन्दू मंदिरो को तोड़ दिया। वहा पर मस्जिद का भी निर्माण करवाया। अलाउद्दीन की इस विजय का उल्लेख मथुरा से प्राप्त एक फ़ारसी लेख में मिलता है, जिसमे उसकी 2 उपाधिओ - अलाउद्दीन शाह व सिकंदर-ए-सनी का उल्लेख भी मिलता है।
मालवा विजय 1305 : यहाँ का शासक महलकदेव
अलाउद्दीन के सेनापति आइन-ए-मुल्क (मुल्तान का सूबेदार) ने महलकदेव को पराजित किया।
सिवाना अभियान 1308 ई. : अलाउद्दीन खिलजी के सेना पति कमालुद्दीन गर्ग ने सातल देव को पराजित किया
जालोर अभियान 1311 ई : 1304 ई में जालोर के शासक कान्हड़देव ने अलाउद्दीन की अधीनता स्वीकार कर ली, परन्तु 1311 तक अपने आप को पुनः स्वतंत्र कर लिया। अलाउद्दीन ने कमालुद्दीन गर्ग के नेतृत्व में सेना भेजी, कान्हड़ पराजित हुआ।
NOTE: जालोर विजय के साथ ही अलाउद्दीन का राजस्थान अभियान पूर्ण हो गया।
NOTE: नेपाल, असम व कश्मीर को छोड़ कर समस्त भारत अलाउद्दीन खिलजी के साम्राज्य का हिस्सा था।
दक्षिण के अभियान : सेनापति - मालिक काफूर। उद्देश्य - धन लूटना व कर वसूल करना। अप्रत्यक्ष शासन स्थापित किया।
वारंगल अभियान (प्रथम आक्रमण) : शासक - प्रताप रूद्र देव अलाउद्दीन के सेनापति - 1303 मालिक छज्जू पराजित हुआ। पर 1308 में मालिक काफूर विजय रहा।
1308 में प्रताप रूद्र देव ने अपनी सोने की मूर्ति बनवा कर उसे सोने की जंजीर के द्वारा गले में लटकाया तथा कोहिनूर हिरा अलउद्दीन को भेंट किया।
देवगिरि अभियान (1306 ई. - 1307 ई.) : शासक रामचंद्र यादव को काफूर ने पराजित किया। अलाउद्दीन ने इसके साथ अच्छा व्यहार किया तथा। एक लाख टंका व चांदी का चंदोबा देकर सम्मानित किया। तथा रायरयान की उपाधि प्रदान की।
1313 ई. में देवगिरि पर पुनः आक्रमण किया। वहा के शासक शंकर देव को मार डाला।
होयसेल अभियान (1310 ई): शासक वीर बल्लाल ने अलाउद्दीन की अधीनता स्वीकार कर ली।
मदुरा अभियान 1311 : यहाँ दो पण्डे भाइयो वीर व सुन्दर में उत्तराधिकार संघर्ष चल रहा था। सुन्दर ने काफूर से सहायता मांगी, तथा वीर को पराजित किया। परन्तु अलाउद्दीन की अधीनता स्वीकार करने से इंकार कर दिया। काफूर ने सम्पूर्ण मदुरा को लूट डाला
NOTE : यह धन प्राप्ति की दृष्टि से अलाउद्दीन का सबसे सफल अभियान था
NOTE : अलाउद्दीन ने अपने मित्र अलाउल मुल्क के कहने पर भारत विजय का विचार त्याग दिया।
विद्रोह: अलाउद्दीन ने खिलाफ सबसे बड़ा विद्रोह उसके भतीजे अकत खाँ व नविन मुसलमानो ने किया। इस विद्रोह को दबाने हेतु अलाउद्दीन ने 4 अध्यादेश जारी किये।
अलाउद्दीन खिलजी का प्रशासन
अलाउद्दीन खिलजी खलीफा की सत्ता में विश्वास नहीं रखता था। उसने खलीफा से अनुमति पत्र प्राप्त नहीं किया परन्तु अपने आप को खलीफा का नायब घोषित कर दिया। अलाउद्दीन खिलजी के शब्द ही कानून थे।
प्रशासनिक सुधर :
अलाउद्दीन खिलजी ने निम्नलिखित विभागों की स्थापना की -
सैन्य प्रशासन :
दशमलव व्यवस्था के तहत सेना का पुनर्गठन किया। अलाउद्दीन खिलजी प्रथम ऐसा शासक था जिसने सैनिको को नगद वेतन देना प्रारम्भ किया। 234 टंका वार्षिक वेतन दिया जाता था। यह पहला ऐसा शासक था जिसने स्थाई सेना राखी इसने सैनिको का हुलिया रखना व घोड़े दागने की प्रथा प्रारम्भ की। इसकी सेना में 4.75 लाख सैनिक थे।
बाजार नियंत्रण: अलाउद्दीन खिलजी ने बाजार नियंत्रण प्रणाली प्रारम्भ की जिसका उद्देश्य काम खर्च पर अधिक सेना रखना था
अलाउद्दीन खिलजी ने 4 प्रकार के बाजार बनवाए
अलाउद्दीन खिलजी ने राशनिंग प्रणाली चलाई। ऐसा करने वाला यह भारतीय इतिहास का प्रथम शासक था।
अलाउद्दीन खिलजी ने इनाम इक्ता व वक्फ भूमि को जप्त कर खालसा भूमि में सम्मिलित कर लिया। तथा खालसा भूमि से कर लेना प्रारम्भ कर लिया। ऐसा करने वाला वह प्रथम शासक था।
अलाउद्दीन खिलजी द्वारा लिए जाने वाले कर ।
NOTE: गारी कर व चरि कर वसूलने वाला अलाउद्दीन प्रथम सुल्तान था।
राजस्व इकठ्ठा करने हेतु इसने दिवान-ए-मुस्तखराज नामक विभाग की स्थापना की।
निर्माण (स्थापत्य) :
अलाउद्दीन खिलजी ने क़ुतुब मीनार के पास अलाइ दरवाजा का निर्माण करवाया। जिसमे पहेली बार गुम्मद का प्रयोग हुआ।
अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली के समीप सीरी फोर्ट निर्माण का करवाया जिसमे हजार खम्बो वाले महल (हजार सीतून) का निर्माण करवाया।
अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी स्थापत्य कला में अरबस्क शैली का प्रयोग किया। जो की हिन्दू व मुस्लिम शैली का मिश्रण है।
NOTE: अलाउद्दीन दिल्ली सल्तनत का प्रथम ऐसा शासक था जिसने वैश्यवृत्ति पर रोक लगा दी।
अलाउद्दीन खिलजी का मकबरा महरोली के क़ुतुब काम्प्लेक्स के पीछे बना हुआ है।
अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु 2 जनवरी 1316 ई को जलोदर नामक रोग से हो गयी। ऐसा माना जाता है की मलिक काफूर ने अलाउद्दीन खिलजी को धीमा ज़हर दिया था। अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के बाद काफूर ने उसके पुरे परिवार को मार डाला। तथा अलाउद्दीन के एक पुत्र मुबारक खाँ को कैद कर लिया।
तथा शिहाबुद्दीन उमर को नया सुल्तान बनाया।
मुबारक खाँ ने जेल में रहते हुए ही षड्यंत्र रच कर काफूर की हत्या करवा दी। और स्वयं शासक बन गया।
उपाधि : खालिफतुल्लअल्ला - अपने आप को ही खलीफा घोषित कर लिया। यह ऐसा करने वाला प्रथम सुल्तान था।
इसने देवगिरि को जीतकर दिल्ली सल्तनत में मिला लिया। ऐसा करने वाला यह प्रथम शासक था।
बरनी के अनुसार मुबारक शाह कभी कभी शराब के नशे में दरबार में नग्न हो कर आ जाता था तो कभी कभी स्त्रियों के वस्त्र धारण कर के आ जाता था।
मुबारक खाँ ने गुजरात के एक हिन्दू को इस्लाम स्वीकार करवा कर अपना वज़ीर स्वीकार किया तथा उसका नाम नसुरुद्दीन खुशरव रखा।
निजामुद्दीन औलिया का अभिवादन स्वीकार करने से माना कर दिया।
खुसरव ने 13 अप्रैल 1320 को मुबारक की हत्या कर दी तथा स्वयं गद्दी पर बैठ गया। तथा अपने आप को पैग़म्बर का सेनापति उपाधि दी तथा औलिया को 5 लाख टंका की भेट दी। गयासुद्दीन तुगलक ने यह भेट वापिस लेना चाहा परन्तु औलिया ने मना करदिया। 5 सितम्बर 1320 को गयासुद्दीन तुगलक ने खुसरव की हत्या कर दी तथा खुद दिल्ली का सुल्तान बन गया।
NOTE : दिल्ली सल्तनत काल के दौरान खुसरव सुल्तान बनने वाला प्रथम हिन्दू शासक था।
दिल्ली सल्तनत काल के दौरान सबसे लम्बे समय तक शासन करने वाला राजवंश था जिसने 94 वर्ष तक शासन किया। तुगलक करोना/मिश्रित तुर्क थे अर्थात पिता तुर्क व माता हिन्दू होती थी।
तुगलक वंश का संस्थापक था। यह एक हिन्दू महिला का पुत्र था। इसकी उपाधि मलिक-उल-गाज़ी
29 बार मंगोलो को पराजित करने वाला शासक गयासुद्दीन तुगलक था। अंतिम रूप से मंगोलो को पराजित करने के बाद इसने गाजी की उपाधि धारण की। ऐसा करने वाला यह दिल्ली का प्रथम सुल्तान था।
1322 में अपने पुत्र जॉन खाँ को दक्षिण भारत अभियान पर भेजा उसमे वारंगल व मदुरा पर अधिकार कर दिल्ली सल्तनत में मिला लिया। जॉन खाँ ने वारंगल का नाम सुल्तानपुर रख दिया। सर्वाधिक साम्राज्य विस्तार इसीकाल में हुआ अतः दिल्ली सल्तनत की जड़े कमज़ोर हुई।
बंगाल अभियान से लौटते वक्त उसके स्वागत के लिए जॉन खाँ ने गयासुद्दीन के लिए एक भव्य लकड़ी का महल बनवाया। यह महल अफगानपुर दिल्ली के पास बनवाया गया था। जिसका वास्तुकार अहमद नियाज था। इसी महल में दब कर गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु हो गयी।
NOTE : माना जाता की गयासुद्दीन की मृत्यु औलिया के श्राप के कारण हुई क्युकी औलिआ ने गयासुद्दीन को कहा की दिल्ली अभी दूर है। गयासुद्दीन को तुगलकाबाद में दफनाया गया।
महत्वपूर्ण कार्य :
दिल्ली के समीप तुगलकाबाद किले का निर्माण करवाया। तथा इसे अपनी राजधानी बनाया।
अलाउद्दीन द्वारा चलायी गयी कठोर नीतियों को समाप्त किया तथा उदारवदी नीतिया अपनाई जिन्हे रस्मेरियाना कहा जाता है।
तुगलक राजवंश दिल्ली सल्तनत का एकलौता राजवंश हे जिसने किसानो के लिए उदारवादी निति अपनई। इन्होने किसानो के लिए सिचाई हेतु नेहरो का निर्माण करवाया। राजस्व को घटा कर इसने 1/3 भाग कर दिया। तथा किसानो के बकाया ऋणों को माफ़ कर दिया। तथा ऋण बकाया होने पर दिए जाने वाले शारीरिक दंड को भी बंद कर दिया।
NOTE : इसने भू राजस्व में राज्य की मांग का आधार हुक्म-ए-हासिल अर्थात पैदावार के अनुरूप राजस्व लिया जाता था। किसानो के होने वाले नुकसान को समायोजित करने का प्रावधान किया।
इसे यातायात व्यवस्था व डाक प्रणाली का पूर्ण रूपेण व्यवस्थापक माना जाता है।
यह दिल्ली सल्तनत काल के दौरान सबसे विद्वान व पढ़ा लिखा शासक था जो खगोल विज्ञानं, गणित, व आयुर्विज्ञान अदि में निपुण था। इसने पहली बार गैर मुसलमानो व भारतीय मुसलमानो को उच्च सरकारी पदों पर नियुक्त किया। अर्थात बरनी ने इसे छिछोरा, जुलाह, नाइ, रसोइया कहा।
यह पहला ऐसा मुस्लिम शासक था जिसने हिन्दू त्योहारों को मनाया। इसने अपनी राजधानी देवगिरि को बनाया तथा उसका नाम दौलताबाद कर दिया।
दिल्ली सल्तनत का वह पहला ऐसा शासक था जिसने सांकेतिक मुद्रा चलाई। उसने चांदी के टांके का मूल्य ताम्बे के जित्तल के बराबर कर दिया। इस वजह से व्यापारियों ने जीतल लेने से माना कर दिया। अर्थात लोगो ने ताम्बे का टंका बना कर चांदी का टंका ले लिया। अर्थात सुल्तान का खाजाना खली हो गया
NOTE : कागज की सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन सबसे पहले चीन देश के काबुलीख़ाँ द्वारा किया गया।
मोहम्मद बिन तुगलक ने अपना राजस्व सुधार ने के लिये दोआब क्षेत्र में कर की वृद्धि की परन्तु वहा अकाल पड़ गया। इस पर सुल्तान ने दिल्ली छोड़ कर गंगा के पास अपना शिविर लगाया। तथा 2.5 वर्ष तक इस शिविर में रहा और अकाल पीड़ित किसानो की सहायता हेतु। सौनघर नामक अकाल संहिता का निर्माण करवाया तथा, दिवान-ए-कोही नामक एक नए कृषि विभाग की स्थापना की। जिसके तहत किसानो को प्रत्यक्ष रूप से सहायता दी जाती थी। ऐसा करने वाला यह प्रथम शासक था
NOTE: फसल चक्र के आधार पर खेती करवाने वाला बिन तुगलक पहला शासक था।
इसके अंतिम समय में - गुजरात में तागि नामक व्यक्ति ने विद्रोह कर दिया। जिसे दबाने हेतु मोहम्मद बिन तुगलक गुजरात गया तो तागि भाग कर सिंध चला गया। वह उसका पीछा करते हुए सिंध पंहुचा। और इस दौरान बीमार पड़ा और 20 मार्च 1351 को उसकी मृत्यु हो गयी।
इसकी मृत्यु पर बदायुनी ने लिखा की सुल्तान को उसकी प्रजा से और प्रजा को सुल्तान से मुक्ति मिल गई।
मोहम्मद बिन तुगलक को अभागा आदर्शवादी सुल्तान कहा जाता है।
इसी के शासन काल के दौरान इब्नेबतूता आया और इसने रेहला नामक ग्रन्थ की रचना की
जन्म 1309 ई. में। माता का बीबी जैला। पिता रज्जब तुगलक यह गयासुद्दीन तुगलक के भाई थे। फिरोज तुगलक, मोहम्मद बिन तुगलक का चचेरा भाई था।
फिरोज शाह तुगलक सल्तनत काल का अकबर कहलाता है।
फिरोज तुगलक की उपलब्धिया :
फ़िरोज़ तुगलक ने दीवाने बन्दगान (दास विभाग) की स्थापना की। दसो के निर्यात पर रोक लगा दी।
दारुल शिफा नामक विभाग की स्थापना की जिसके तहत निशुल्क चिकत्सा दी जाती थी।
दीवाने खैरात की स्थापना की जिसके द्वारा गरीब व असहाय लोगो की सहायता मिलती थी।
दीवाने इस्तिहक (पेंशन विभाग) : बुजुर्गो को पेंशन देने का प्रबंध करवाया
PWD : सार्वजानिक निर्माण विभाग का निर्माण करवाया
इसने 24 कष्टदाइ करो को समाप्त किया तथा शरीअत में उल्लेखित केवल चार कर जजिया जकात खैराज व ख़ुम्स ही वसूलता था।
इसने एक तास घड़ियाल नामक जल घडी का निर्माण करवाया।
फिरोज शाह तुगलक ने शिक्षा में व्यवसाइक अध्ययन पाठ्यक्रम में लागु करवाया ताकि अच्छे कारीगर मिल सके
क़ुतुब मीनार की 5वी मंजिल का पुनर्निर्माण निर्माण करवाया।
सर्वाधिक नेहरो का निर्माण इसी के शासन काल के दौरान किया गया। नहर निर्माण के बाद इसने हक़-ए-सर्ब / हब-ए-सर्ब नामक सिचाई कर लगवाया।
फिरोज शाह तुगलक ने 12 हजार फलो के बाग़ लगवाए जिससे 18 लाख टंका वार्षिक आय होती थी। जबकि इसकी कुल सालाना आय 6 करोड़ 85 लाख टंका थी।
फिरोज शाह तुगलक ने लगभग 300 नगरों का निर्माण करवाया जिनमे से मुख्य निम्न लिखित है।
फिरोज तुगलक को मध्यकालीन भारत का कल्याण कारी निरंकुश शासक कहा जाता है।
फिरोज तुगलक ने खलीफाओं की प्रशंसा पाने के लिए, पूरी(उड़ीसा) व जगन्नाथ मंदिर को लुटा तथा उसकी मूर्तियों को तोड़ कर समुन्द्र में फिकवा दिया।
फिरोज तुगलक ने अपनी आत्म कथा फुतुहात-ए-फिरोजशाही स्वयं लिखी।
1388 ई. में फिरोज तुगलक की मृत्यु के बाद उसका पौत्र तुगलक शाह शासक बना जो की अयोग्य था
जफ़र खाँ के पुत्र अबू बक्र ने तुगलक शाह की हत्या कर दी। और स्वयं शासक बना जो की 1390 ई. तक शासक बना रहा।
एक साल में क्या ही कर लेगा
इसके समय गुजरात में लोगो ने विद्रोह कर दिया था।
तुगलक वंश का अंतिम शासक था। मंगोल आक्रांता तैमूर ने 1398 ई. इसी के शासन काल के दौरान आक्रमण किया।
1414 ई. में दिल्ली के अनेक राज्यों ने अपने आप को स्वतंत्र घोषित कर लिया। और 1414 में ही इसकी मृत्यु हो गयी।
इसी की साथ तुगलक वंश समाप्त हो गया।
दिल्ली सल्तनत काल के दौरान अनेक राज्यों द्वारा अपने आप को स्वतंत्र घोषित करदिये जाने के बाद हुई राजनैतिक उठापटक में दिल्ली की गद्दी सैय्यद वंश के हाथ लगी।
दिल्ली सल्तनत काल के दौरान सैय्यद वंश एक मात्र ऐसा वंश था जो की अपने आप को पैग़म्बर मोहम्मद का वंशज मानते थे , अतः यह शिया समुदाय के थे। इस वंश का संस्थापक खिज्र खाँ था। खिज्र खाँ के पिता मर्दान दौलत अरब के निवासी थे। जो की फिरोज शाह तुगलक के आमिर वर्ग में शामिल थे। तैमूर के आक्रमण के दौरान मर्दान दौलत व खिज्र खाँ ने तैमूर की सहायता की। इसी सहायता से प्रसन्न हो कर तैमूर ने खिज्र खाँ को मुल्तान लाहौर व सिंध की सूबेदारी प्रदान की। खिज्र खाँ ने तैमूर के बेटे शाह रुक खाँ के प्रतिनिधि के रूप में कार्य किया। 20 मई 1421 को खिज्र खाँ की मृत्यु हो गई।
मुबारक शाह खिज्र खाँ का पुत्र था। यह सैय्यद वंश का सबसे प्रतापी शासक था। इसके खिलाफ अनेक विद्रोह हुए, जिसे उसने सफलता पूर्वक दबा दिया।
मुबारक शाह ने यमुना के किनारे मुबारकबाद नामक एक नए नगर का निर्माण करवाया।
मुबारक शाह से असंतुष्ट लोगो ने एक गुट का निर्माण करा जिसमे हिन्दू व मुस्लिम दोनों सम्मिलित थे। मुसलमानो का मुखिया सरवर उल मुल्क को बनाया गया। तथा हिन्दूओ का मुखिया रिद्धपाल बना। इन सभी ने सुल्तान को मुबारकबाद नगर दिखने के बहाने से वह बुलाया और उसे मार डाला।
बाकि के राजाओ ने कुछ खास उखाड़ा नहीं हे जो की एग्जाम आये तो हम आगे बढ़ते है। बस इतना याद रखो की अंतिम शासक हम्मीर खाँ को 1450 में बहलोल लोदी ने मार डाला और सैय्यद वंश का पतन हो गया।
बहलोल लोदी ने अंतिम सैय्यद वंश के शासक हम्मीर खाँ को 1450 में मार डाला और शासन की बागडोर अपने हाथो में ले ली, और दिल्ली सल्तनत पर एक नए राजवंश लोदी वंश की नीव डाली।
दिल्ली सल्तनत काल में यह प्रथम अफगान साम्राज्य था, जिसकी स्थापना बहलोल लोदी ने की।
बहलोल लोदी के पिता का नाम मालिक काला था। जिसकी मृत्यु बहलोल के जन्म के पूर्व ही हो गयी। अतः बहलोल का लालन पालन उसके दादा मलिक बहराम व उसके चाचा इलम खाँ ने किया।
सबसे पहले इसने गाजी की उपाधि धारण की। इसके शासन काल के दौरान सर्कि शासक महमूद शाह ने इस पर आक्रमण किया। इस आक्रमण के दौरान एक अफगान सेनापति "दरिया खा" लोदी से मिला इसी कारण लोदी यह युद्ध जितने में सफल रहा। यह युद्ध पानीपत के पास नरेला नामक स्थान पर लड़ा गया।
ग्वालियर अभियान से लौटते समय इसे लू लग गयी और इसी कारण इसकी मृत्यु हो गयी।
NOTE: दिल्ली सल्तनत में सर्वद्धिक लम्बे समय तक शासक बहलोल लोदी रहा। इसने बहलोली प्रकार के सिक्के चलाए, जो की अकबर के आने तक चलते रहे।
यह अपने सरदारों के सामने गद्दी पर नहीं बैठता था। इसके कुल 9 पुत्र थे, जिनमे उसकी मृत्यु के बाद उत्तराधिकार संघर्ष हुआ। परन्तु सिकंदर लोदी शासक बना।
इसका मूल नाम जैबंद/जैबूबन्द था। इसे नियाज खाँ भी कहा जाता था। यह लोदी वंश का सर्वश्रेष्ठ शासक माना जाता है।
सिकंदर लोदी ने 1504 ई. में यमुना के किनारे आगरा नगर बसाया तथा बादल गढ़ के किले का निर्माण करवाया। 1506 ई. में आगरा को अपनी राजधानी बनाया। आगरा की स्थापना का उद्देश्य राजस्थान के शासको व व्यापारिक मार्ग पर नियत्रण करना था।
इसने जमीन में गढ़े हुए धन में अपना कोई हिस्सा नहीं लिया।
इसने अपने पिता के विपरीत सिंहासन पर बैठना प्रारम्भ किया और अफगान अमीरो की जगीरो की जांच करवाई और उन्हें दण्डित करना प्रारम्भ किया। वह अमीरो को जनता के सामने कोडो से पिटवाता था।
सिकंदर लोदी ने हिसाब किताब रखने हेतु लेखा परिक्षण प्रणाली प्रारम्भ की। यह धर्मांध था अतः इसने समस्त हिन्दुओ पर जजिया कर लगवाया तथा अनेक हिन्दू मंदिरो को तोड़ डाला अतः इसे औरंगजेब का पूर्वगामी कहा जाता है।
सिकंदर लोदी ने अनुवाद विभाग की स्थापना की। तथा मुस्लिम शिक्षा में सुधर हेतु ईरान के विद्वान शैख़ अब्दुल्ला को बुलाया। इसकी मृत्यु 1517 ई में हो गई। इसका मकबरा खैरपुर दिल्ली में है।
सिकंदर लोदी ने सिकंदरी गज - भूमि माप प्रणाली चलाई।
सिकंदर लोदी का बड़ा बेटा था जो अपने छोटे भाई जलाल खाँ लोदी को हरा कर शासक बना।
1517-18 ई में राणा सांगा से खतौली के युद्ध में पराजित हुआ।
1526 पानीपत के युद्ध में बाबर के हाथो मारा गया। इस प्रकार युद्ध भूमि में मारा जाने वाला दिल्ली सल्तनत का प्रथम शासक था।
The content of this E-book are
Tags: indian history notes, delhi saltanat indian history notes pdf, bharat ka itihas notes pdf, bharat ka itihas pdf