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मौर्य काल का समय 323 ई. पू. से 185 ई. पू. था, इसके जानकारी के स्त्रोत निम्नलिखित है :-
1 साहित्यिक स्त्रोत
अर्थशास्त्र : अर्थशास्त्र की रचना कौटिल्य (विष्णुगुप्त / चाणक्य) के द्वारा की गयी। कौटिल्य के अर्थशास्त्र भारतीय राजनीती पर लिखा गया प्रथम ग्रन्थ था। जिसकी तुलना मैकियावली के "THE PRINCE" के साथ की जाती है अतः चाणक्य को भारत का मैकियावली कहा जाता है। अर्थशास्त्र में 15 अधिकरण 180 प्राधिकरण व 6000 श्लोक मिलते है।
यह संस्कृत भाषा में लिखा गया था तथा इसकी शैली गद्य व पद्य थी। 1905 में तंजौर के ब्राह्मण भट्ट्स्वामी ने पुणे के पुस्तकालय अध्यक्ष प्रोफेसर श्याम शास्त्री को इसकी एक पाण्डुलिपि भेंट की। सर्वप्रथम इसका प्रकाशन 1909 में संस्कृत भाषा में करवाया गया, जबकि 1915 में इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया गया।
अर्थशास्त्र के 6th अधिकरण का नाम मंडल योनि है जिसमे राज्य के 7 अंग बताये गए है।
इंडिका : इंडिका की रचना मैगस्थनीज़ के द्वारा की गयी है। यह मूल रूप से अप्राप्य है परन्तु अनेक लेखकों के विवरण के आधार पर डॉ स्वान बेक के द्वारा इसका पुनः संकलन किया गया। मैगस्थनीज़ 305 ई. पू. में सेल्यूकस निकेटर के राजदूत रूप में भारत आया। तथा तत्कालीन मौर्य समाज व राजनीती की जानकारी दी।
मुद्राराक्षस : यह विशाखादत्त के द्वारा लिखित है। यह ग्रन्थ गुप्त काल में लिखा गया। 10वि सदी में इसपर टिका ढुंढिराज ने लिखा। यह भारत का प्रथम जासूसी ग्रन्थ माना जाता है।
2 पुरातात्विक साक्ष्य:
अभिलेख : अशोक के अभिलेखों की खोज सर्वप्रथम 1750 में टी फैनथेलर के द्वारा की गई। सर्वप्रथम उसने दिल्ली - मेरठ अभिलेख को खोजै। अशोक के अभिलेखों को सर्वप्रथम पढ़ने का श्रेय jems prisep को जाता है जिसने 1837 में दिल्ली-टोपरा स्तम्भलेख को पढ़ा।
शिलालेख : अशोक के शिलालेखों की संख्या 14 है जो की 8 निम्नलिखित स्थानों से प्राप्त होते है।
NOTE: कंधार से प्राप्त शेर-ए-कुना में ग्रीक व अरमाइक लिपियों में प्राप्त होता हे। अतः अशोक के अभिलेखों की लिपिया खरोष्टी ब्राह्मी ग्रीक व अरमाइक थी जब की इन्हे प्राकृत भाषा में लिखा जाता था। भारत से प्राप्त सभी अभिलेखों की लिपि ब्राह्मी है। जब की भारत से बहार खरोष्टी लिपि में प्राप्त होते है।
स्तम्भ लेख : अशोक को स्तम्भ लगाने की प्रेरणा ईरानी शासक डरा-1 से मिली। अशोक के वृहद स्तम्भ लेखो की संख्या 7 है, जो की निम्नलिखित 6 स्थानों से प्राप्त होते है।
लघु स्तम्भ लेख :
कौशाम्बी के लघु स्तम्ब लेख को रानी का अभिलेख भी कहा जाता है क्युकी इसमें अशोक एक मात्र सबसे प्रिय रानी कोरुवाकी का उल्लेख मिलता है। जो की तीवर की माता थी। रुम्मिनदेई एक मात्र ऐसा अभिलेख है, जिससे मौर्यकालीन कर व्यवस्था की जानकारी मिलती है।
सारनाथ स्तम्भ लेख UP : यह आधनिक भारत का राष्ट्रीय प्रतिक चिन्ह है। इसके फलक पर 4 सिंह पीठ सटा कर बैठे हुए ह, जो की आक्रामक अवस्था में है तथा एक चक्र धारण किये हुए है। यह चक्र गौतम बुद्ध के धर्म चक्र प्रवर्तक का सूचक है। सारनाथ के स्तम्भ में कुल 4 चक्र है, तथा इसके फलक पर क्रमशः हाथी गोदा बैल व सिंह का अंकन किआ गया है। तथा सत्यमेव जयते श्लोक लिखा गया है
भगवान बुद्ध : भगवान बुद्ध ने 29 वर्ष की आयु में गृह त्याग किया इस घटना को बौद्ध धर्म में महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है।
गृह त्याग के बाद उन्होंने वैशाली के आलरकलाम को अपना प्रथम गुरु बनाया जो की सांख्य दर्शन के ज्ञाता थे। बुद्ध ने अपना दूसरा गुरु वैशाली के ही रामपुत्त को बनाया। भगवान बुद्ध ने वैशाख पूर्णिमा के दिन ज्ञान की प्राप्ति की इस घटना को बौद्ध धर्म में सम्बोधि कहा जाता है। भगवन बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ में 5 ब्राह्मणो को दिया जिनका नाम क्रमशः बाप्पा, भदीय , अस्सागी, महानामा , और कौडीन्य था। बौद्ध धर्म में इस घटना को धर्म चक्र प्रवर्तन कहा जाता है। भगवान बुद्ध का निर्वाण 483 BC में कुशीनगर में हुआ इस घटना को महापरिनिर्वाण कहा जाता है।
बौद्ध धर्म के त्रिरत्न - बुद्ध, धम्म, और संघ को माना जाता है। भगवान बुद्ध को एशिया का ज्योतिपुंज कहा जाता है।
गुहभिलेख : आजीवक धर्म के अनुयाइयों के निवास हेतु मौर्य सम्राठ अशोक व उसके पौत्र दशरथ के द्वारा बारबरा व नागार्जुन की पहाड़ियों (बिहार) में 60 गुफाओ का निर्माण करवाया गया।
NOTE : आजीवक धर्म का संस्थापक मुखलिपूत गोसाल था।
यह मौर्य वंश का संस्थापक माना जाता है। इसने अपने गुरु चाणक्य की सहायता से नन्द वंश के घनानंद को पराजित किया तथा चाणक्य को अपना प्रधानमंत्री बनाया। यूनानी इतिहास करो ने चन्द्रगुप्त मौर्य के लिए 2 नाम प्रयुक्त किये है।
सर्वप्रथम 1793 में विलियम जोन्स ने इन नामो के लिए चन्द्रगुप्त मौर्य की पहचान की। प्लूटार्क व स्ट्रेबो के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य ने 6 लाख की सेना लेकर सम्पूर्ण भारत को रोंध डाला
बौद्ध ग्रन्थ महावंश के अनुसार कौटिल्य ने चन्द्रगुप्त को सकल जम्बू द्वीप का स्वामी बना दिया 305 ई.पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य व यूनानी शासक सेल्युकस निकेटर के बिच युद्ध लड़ा गया जिसमे सेल्युकस निकेटर पराजित हुआ तथा दोनों के बिच संधि हुई जिसकी निम्नलिखि शर्ते थी।
Note : मेगस्थनीज भारत में नियुक्त होने वाला प्रथम विदेशी राजदूत था।
312 BC के आसपास मगध में एक भयंकर अकाल पड़ा जो की 12 वर्ष तक चला। इस दौरान जैन मुनि भद्रबाहु अपने शिष्यो को लेकर दक्षिण भारत चला गय, परन्तु स्थूल भद्र अपने शिष्यों के साथ मगध में ही रहा। 12 वर्ष का अकाल समाप्त हुआ तो 300 BC के आसपास भद्रबाहु पुनः मगध लौटा। 300 BC में पहेली जैन सभा का आयोजन पाटलिपुत्र में हुआ जिसकी अध्यक्षता भद्रबाहु व स्थूलभद्र ने की। इसी जैन सभा के दौरान जैन धर्म दो भागो में विभाजित हो गया।
1 दिगंबर
2 शेवताम्बर
चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपनी गुजरात (सौराष्ट्र) के प्रांतपाल पुष्यगुप्त वैश्य को आदेश देकर इतिहास प्रसिद्ध सुदर्शन झील का निर्माण करवाया। सुदर्शन झील का उल्लेख रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख में मिलता है। यह झील ऊर्जियत पर्वत के पास सुवर्ण सिकना नदी व पलासिनी नदी के पास स्तिथ है। इसका पुनर्निर्माण क्रमशः अशोक(प्रांतपाल = तुषस्प), रुद्रदामन(प्रांतपाल = सुविशाख), और स्कन्दगुप( प्रांतपाल = पर्णहरित) ने करवाया
चन्द्रगुप्त मौर्य जैन मुनि भद्रबाहु के साथ कर्णाटक के श्रवणबेलगोला चला गया जहा उसने संलेखना के द्वारा अपना देह त्याग दिया। जिस पहाड़ी पर देह त्यागी उस पहाड़ी का नाम बदल कर चन्द्रगिर पहाड़ी कर दिया गया।
चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के बाद बिन्दुसार शासक बना। चाणक्य कुछ समय के लिए बिन्दुसार का प्रधानमंत्री बना रहा परन्तु उसकी मृत्यु के बाद राधागुप्त प्रधानमंत्री बना।
बिन्दुसार के दरबार में 500 सदस्यों की एक मंत्री परिषद् थी जिसका प्रधान खल्लाटक था। ग्रीक इतिहासकारो ने बिन्दुसार को अमित्रोकेटस या अमित्रखाद कहा है। वायु पुराण में इसे भद्रसार जबकि जैन ग्रंथो में इसे सिंह सेन कहा गया है। जैन ग्रंथो के अनुसार, बिन्दुसार की माता का नाम दुर्धरा था।
बिन्दुसार ने मिश्र के शासक टॉलमी II को एक पत्र लिखा टॉलमी II ने बिन्दुसार के दरबार में डाइनोसियस नामक राजदूत की नियुक्ति की।
बिन्दुसार ने यूनानी शासक अंटिओकस I को भी पत्र लिखा तथा निम्नलिखित 3 चीज़ो की मांग की।
यूनानी शासक ने अंजीर व शराब तो भेज दी परन्तु दार्शनिक भेजने से इंकार कर दिया। उसने अपने राजदूत के रूप में डायमेकस को भेजा।
बिन्दुसार के शासनकाल के अंतिम समय में तक्षशिला में 2 विद्रोह हुए जिन्हे दबाने हेतु सबसे पहले उसने अशोक को भेजा तथा बाद में सुसीम को भेजा।
सिंहली अनुश्रुतियों के अनुसार बिन्दुसार की मृत्यु के बाद 4 वर्ष तक उत्तराधिकार संघर्ष चला और इस उत्तराधिकार संघर्ष में अशोक ने अपने 99 भइओ की हत्या कर 269 ई. पू. में विधिवध राज्याभिषेक करवाया। अशोक ने केवल अपने एक भाई तिष्य को जीवित रखा
बौद्ध ग्रंथो के अनुसार अशोक की माता का नाम सुभद्रांगी या धम्म या जंपादकल्याणी व वनदेवी मिलता है। यह चंपा के एक ब्राह्मण की पुत्री थी। राजा बनने से पूर्व अशोक उज्जैन का प्रांतपाल था। अशोक के सम्पूर्ण शासनकाल को 3 भागो में विभाजित किया जा सकता है
कलिंग युद्ध -
इस युद्ध का उल्लेख अशोक ने अपने 13वे शिलालेख में किया है। यह युद्ध अशोक के राज्याभिषेक के 8वे वर्ष अर्थात 261 BC में लड़ा गया। खारवेल के हाथीगुम्फा अभीलेख के अनुसार कलिंग का शासक नंदराज था। कलिंग युद्ध हेतु निम्नलिखित 3 कारण माने जाते है।
इस युद्ध में लाखो लोग मरे गए व बेघर हो गए। अशोक द्वारा लड़ा गया अंतिम युद्ध था। इसके बाद अशोक ने रण घोष के स्थान पर धम्म घोष को अपनाया
कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार अशोक ने झेलम नदी के किनारे श्रीनगर नामक नगर की स्थापना की। अशोक का साम्राज्य नेपाल में भी था। उसने नेपाल में देवपाटन या ललित पतन नमक नगर बसाया अशोक की पटरानी का नाम असिन्धमित्र था उसकी मृत्यु के बाद तिष्यरक्षिता पटरानी बनी जिसने कुणाल को अंधा करवादिया। कुणाल की माता का नाम पद्मावती मिलता है। अशोक की एक अन्य पत्नी देवी थी जिसकी 2 संताने महेंद्र वे संगमित्रा थी। अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करने हेतु श्रीलंका भेजा
NOTE : श्रीलंका के शासक का नाम तिष्य था। जिसे अशोक की भाती देवनाम प्रिये या देवनामपियदशी की उपाधि प्राप्त थी। यह उपाधिया अशोक के पौत्र दशरथ को भी प्राप्त थी। जो की कुणाल का पुत्र था।
जैन ग्रंथो के अनुसार अशोक की मृत्यु के बाद सम्प्रति शासक बना परन्तु बौद्ध ग्रंथो के अनुसार शासक का नाम कुणाल मिलता है।
मौर्य वंश के अंतिम शासक के रूप में ब्रहद्रथ का नाम मिलता हे जिसकी हत्या 185 B.C. में पुष्यमित्र शुंग के द्वारा कर दी गया
अशोक का नाम "अशोक" निम्नलिखित अभिलेखों से प्राप्त होता है। गुर्जरा(MP) मस्की(karnatak) नेट्टूर(karnatak) उदयगोलम(karnatak)
अशोक का धम्म
अशोक ने अपनी जनता के नैतिक उत्थान के लिए जो नियमो की संहिता प्रस्तुत की उसे अभिलेखों में धम्म कहा गया है। अशोक का धम्म उपासक बौद्ध धर्म था सर्वप्रथम अशोक को निग्रोथ नामक बालक ने बौद्ध धर्म से परिचित किया लेकिन मोग्गली पूत तिस्स के प्रभाव में आकर वह पूर्ण रूप से बौद्ध हो गया। दिव्यावदान के अनुसार उपगुप्त नामक ब्राह्मण ने अशोक को बौद्ध धर्म से दीक्षित किया। अशोक के धम्म की परिभाषा दूसरे व सातवे अभिलेखों से मिलती है जो की राहुलवाद सूत से मिलती है।
मौर्य प्रशासन केंद्रीय राजतंत्रात्मक प्रशासन था जिसका उल्लेख कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में किया है। प्राचीन भारत में सबसे विशाल नौकरशाही मौर्य काल में थी। अर्थशास्त्र में मंत्री परिषद् को वैधानिक आवयश्कता बताते हुए कहा हे की। राज्य एक पहिये पर नहीं चल सकता। इस मंत्रिपरिषद को अशोक के अभिलेखों में परिषा कहा गया है। मंत्रिपरिषद में 2 भाग होते थे -
1 मंत्रिण : यह राजा के विश्वासपात्र लोगो का समूह था जिनमे 3 से 5 लोग शामिल होते थे। इन्हे 48000 पण वार्षिक वेतन मिलता था।
2 सदस्य: इनका वेतन 12000 पण वार्षिक था।
केंद्रीय प्रशासन : राजा के प्रमुख 18 सहयोगियो को तीर्थ कहा जाता था, इन्हे महामात्य कहा जाता था। प्रमुख तीर्थ मंत्री व पुरोहित थे। तीर्थो से निचे द्वितीय श्रेणी के पदाधिकारी होते थे जिन्हे अध्यक्ष कहा जाता था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार अध्यक्षों की संख्या 26 होती थी। तीर्थो व अध्यक्षों में मध्य संयोजक कड़ी के रूप में युक्त व उपयुक्त नियुक्त होते थे। इन सभी की नियुक्ति से पूर्व इनके चरित्र की जांच हेतु उपधा परिक्षण किया जाता था।
प्रांतीय प्रशासन :
मौर्य साम्राज्य प्रांतो में विभाजित था चन्द्रगुप्त मौर्य के समय प्रांतो की संख्या 4 जब की अशोक के समय प्रांतो की संख्या बढ़ कर 5 हो गयी।
प्रान्त - राजधानी - सम्राट
1 उत्तरापथ - तक्षशिला
2 दक्षिणापथ - सुवर्णगिरि
3 अवन्ति - उज्जैन
4 मध्यदेश - पाटलिपुत्र
5 कलिंग - तोसलि - सम्राट अशोक
साम्राज्य का विभाजन निम्न प्रकार था।
साम्राज्य > प्रान्त > आहार (विषय) > स्थानीय > द्रोणमुख > खवर्टिक > संग्रहण > ग्राम
IMPORTANT : प्राचीन भारत में पहेली बार जनगणना मौर्य काल में की गयी। जनगणना अधिकारी को नागरक कहा जाता था।
सर्वोच्च न्यायाधीश राजा होता था। अर्थशास्त्र में 2 प्रकार के न्यायालयों का उल्लेख मिलता है,
1 धर्मस्थीय : जिनमे दीवानी मामले आते थे जैसे चोरी लूट जिन्हे साहस कहते थे। और पुलिस को रक्षिण कहा जाता था और मुख्या न्यायाधीश हो व्यावहारिक कहा जाता था।
2 कंटकशोधन : जिसमे फौजदारी मामले आते थे इसके मुख्य न्यायाधीश को प्रदिष्ठा कहा जाता था।
मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था कृषि पशुपालन व व्यापर पर आधारित थी जिसे सम्मिलित रूप से वार्ता कहा जाता था। कृषि योग्य भूमि को उर्वरा या क्षेत्र कहा जाता था। भूमि के स्वामी को क्षेत्रक कहा जाता था। जबकि कृषि करनेवाले काश्तकार को उपवास कहा जाता था। राज्य की सम्पूर्ण भूमि पर राजा का अधिकार होता था। राजा को कर के रूप में 1/6 भाग दिया जाता था। अर्थशास्त्र में 10 प्रकार की भूमियो का उल्लेख मिलता है। जिसमे से प्रमुख निम्नलिखित थी।
मौर्यकालीन कर : अर्थशास्त्र में कुल 21 प्रकार के करो का उल्लेख मिलता है जिनमे से प्रमुख निम्नलिखित थे
मौर्यकालीन सिक्के
** मौर्यकालीन सिक्के : पंचमार्क / आहत
चन्द्रगुप्त मौर्य ने उत्तरापथ का निर्माण करवाया जो की मौर्य काल की सबसे लम्बी सड़क थी मध्यकाल में इस उत्तरापथ का पुनर्निर्माण शेर शाह सूरी के द्वारा करवाया गया तथा इसे सड़क ए आजम नाम दिया। आधुनिक भारत में अंग्रेज गवर्नर जनरल ऑकलैंड(1836 - 1842) ने इसका नाम Grand Trunk Road (G. T. ROAD) रखा।
मौर्यकाल में सूती वस्त्र उद्द्योग सबसे प्रमुख उद्द्योग था।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मौर्यकालीन समाज में 4 वर्णो का होना बताया गया है।
कौटिल्य ने पहेली बार शुद्रो को आर्य कहा हे तथा कृषि व वाणिज्य को शुद्रो की प्रथम वार्ता मन गया है।
मेगस्थनीज ने अपनी इंडिका में भारतीय समाज में 7 जातिया बताई है।
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