14वी - 15वी शताब्दी में भारत और यूरोप के मध्य स्तिथ समुन्द्र पर अरबी लोगो का अतिक्रमण था। यह अरबी लोग भारत से मसाले खरीद कर यूरोपीय देशो में उच्च दामों पर बेचते थे।
इन अरबी लोगो के बिचौलियापन को समाप्त करने के लिए यूरोप के पॉप ने एक आदेश जारी कर यूरोप के 2 देश पुर्तगाल व स्पेन को भारत के साथ जलीय मार्ग खोजने का आदेश दिया इस आदेश को "पापलबूल" कहा गया।
सर्वप्रथम स्पेन का नाविक कोलंबस ने अपनी यात्रा प्रारम्भ की, वह जल में भटक गया, और एक द्वीप पर पंहुचा जिसका नाम इंडीज बताया, कालांतर में यही इंडीज - वेस्ट इंडीज के नाम से प्रसिद्द हुआ। इसी प्रकार 1484 ई. में उसने अमेरिका की खोज की।
कोलम्बस के बाद वास्कोडिगामा ने प्रयास किया। यह पुर्तगाली नाविक था जो की 1497 ई. में अफ्रीका महाद्वीप के चक्कर लगते हुए। 90 दिन की यात्रा के बाद आशा अंतरीप द्वीप(Cape of good hope) पर पंहुचा यहाँ उसे एक गुजरती यात्री(मछुआरा) अब्दुल माणिक मिला। इसी की सहायता से वह 20-5-1498 को कलिकट बंदरगाह पंहुचा। कालीकट का एक और नाम कप्पकडाबू था। कालीकट का शासक हिन्दू जमोरिन था जिसने वास्कोडिगामा का स्वागत किया। वापस जाते समय राजा ने वास्कोडिगामा को 4 जहाज मसाले के दिए, जिसे वापस जा कर उसने 50 गुना मुनाफे में बेचा। पुर्तगालियों ने अपनी प्रथम व्यापारिक कोठी 1503 - कोचीन में स्थापित की।
वास्कोडिगामा कुल 3 बार भारत आया:
पुर्तगालियों का प्रथम वायसराय फ्रांसिस्को-दी-अलमिडा था। जिसने ब्लू वाटर पोलिसी अपनायी।
यूरोपियो का भारत में आगमन का क्रम : पुर्तगाली > डच > अंग्रेज > डेनिस > फ्रांसीसी
सबसे पहले पुर्तगाली आये और सबसे अंत में गए, सबसे अंत में फ़्रांसिसी आये परन्तु सबसे पहले गए। अंग्रेज डचो से पूर्व भारत में आये परन्तु व्यापारिक कंपनी की स्थापना डचो के बाद में हुई।
1661 में तत्कालीन सम्राट चार्ल्स द्वितीय द्वारा पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीन से विवाह करने पर बम्बई दहेज़ में दिया गया।
अन्य महत्वपूर्ण तत्व :
पहेली बार तम्बाकू का पौधा 1608 में जहांगीर के काल में पुर्तगालीयो द्वारा लाया गया।
पुर्तगाली शासन के दौरान ही मध्य अमेरिका से मूंगफली आलू पपीता मक्का अनानास व अमरुद का प्रवेश भारत में करवाया गया।
इसके आलावा बादाम लीची काजू इत्यादि भारत आये।
1556 ई. में भारत में प्रथम प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना हुई।
भारतीय जड़ीबूटियों पर प्रथम पुस्तक 1563 में प्रकाशित हुई।
डच होलेंड/नीदरलेंड के निवासी थे। 1596 में प्रथम डच व्यक्ति कर्नेलिस-डे-डहस्तमान भारत आया।
NOTE : 1602 में डच संसद ने एक अधिनियम पारित कर। यूनिटेड ईस्ट इण्डिया कंपनी ऑफ नीदरलेंड की स्थापना की। तथा इसे भारत में 21 वर्षो हेतु व्यापर करने का अधिकार दिया।
NOTE : 1605 में प्रथम डच कंपनी की स्थापना मुसलीपट्टनम में की जहा पर निल का निर्यात होता था। अंग्रेजो से बाद में आये थे लेकिन कंपनी पहले शुरू की।
यूरोपियो में सबसे सफल कंपनी अंग्रेजो की थी। सर्व प्रथम अंग्रेज व्यापारी के रूप में जॉन मिल्डेनहॉल 1597 में अकबर के शासन काल में भारत आया 7 साल भारत में रहा परन्तु अकबर से व्यापारिक फरमान प्राप्त नहीं कर पाया।
1599 ई में पूर्वी देशो के साथ व्यापर करने के लिए ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने 217 लोगो के एक समूह को 15 वर्ष हेतु एक अधिकार पत्र प्रदान किया। इस समूह में वह स्वयं भी शामिल थी जिसका नाम "governor and company of merchants of London trading into the east indies" था। एलिजाबेथ प्रथम ने शाही फरमान देकर 15 वर्ष हेतु पूर्वी देशो के साथ जो व्यापारिक अधिकार पत्र प्रदान किया इसी को Charter Act (राजलेख अधिनियम) कहा जाता है।
1608 ई. में प्रथम व्यापारिक जहाज हैक्टर(रेड ड्रैगन) की सहायता से कैप्टेन हॉकिंस सूरत पंहुचा तथा इसे अपनी प्रथम व्यापारिक कोठी बनाया। 1609 में जहांगीर के दरबार में आगरा पंहुचा जहा उसने जहांगीर से फ़ारसी भाषा में बात की इसी से प्रभावित हो कर जहांगीर ने उसे खान की उपाधि दी तथा 400 का मनसब दिया।
उसने बादशाह से सूरत में व्यापारिक कोठी खोलने की अनुमति लेना चाही लेकिन पुर्तगालियों के इसका विरोध करने पर जहांगीर उसे अनुमति नहीं दे पाया।
1613 में हॉकिंस के चले जाने बाद जहांगीर ने फरमान जारी कर सूरत की कोठी को वैधानिकता प्रदान की।
अंग्रेजो की प्रथम वैधानिक फैक्टरी 1611 में मुसलीपट्टनम(आंध्र प्रदेश) में स्थापित की गयी।
1615 में जेम्स प्रथम के राजदूत के रूप में कंपनी की और से सर टॉमस रॉ स्मिथ भारत आया और जनवरी 1616 ई. में वह जहांगीर से अजमेर के मैगजीन के किले में मिला और व्यापारिक फरमान प्राप्त करने में सफल रहा। वह भारत में 3 साल तक रहा और 1619 में पुनः इंग्लैंड चला गया। अंग्रेजो का प्रथम गवर्नर माना जाता है।
1698-99 में कंपनी ने बंगाल के सुल्तान अजीमुशान से एक अधिकारिक पत्र प्राप्त कर बंगाल के तीन गांव - सुतनुति, गोविंदपुर, व कालीघाट 1200 रूपए वार्षिक में जमींदारी ले ली, तथा यही पर एक फोर्ट विलियम की स्थापना की जिसे कालांतर में कलकत्ता के नाम से जाना जाता है। जिसकी नीव जॉब चारनौक के द्वारा राखी गयी।
1701 में औरंगजेब ने एक फरमान जारी किया तथा कहा की भारत में रहने वाले तमाम यूरोपियो को गिरफ्तार कर लिया जाए।
NOTE 1694 में ब्रिटिश संसद एक अधिनियम जारी कर ब्रिटैन के समस्त नागरिको को भारत में व्यापर करने का अधिकार दे दिया इस प्रकार भारत में एक और कंपनी "English company trading to the east indies" की स्थापना हुई
1702 ई. में ब्रिटेन संसद ने पुनः अधिनियम जारी कर दोनों कंपनियों का विलय कर दिया और फिर इसका नाम "The united company of England trading to the east indies" रखा।
1707 में इस कंपनी के अधिकारों को असीमित कर दिया गया। 1715 में इस कंपनी ने मुग़ल सम्राट फ़र्रुख़सियर के समक्ष जॉन शरमन की अध्यक्षता में एक शिष्ट मंडल भेजा। इस शिष्ट मंडल में हेमिल्टन नामक एक शैल्य चिकित्सक भी था जिसने फ़र्रुख़सियर के एक असाध्य रोग का इलाज किया। तथा उसकी पुत्री का भी इलाज किया। इसी से प्रस्सन हो कर फ़र्रुख़सियर ने अंग्रेजो को बंगाल में कर मुक्त व्यपार करने का अधिकार पत्र प्रदान किया। यही अधिकार पत्र भारत में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना का कारण मन जाता है। अतः इतिहास करो ने फ़र्रुख़सियर को घृणित कायर या मुर्ख लम्फट राजा कहा है।
टॉमस रॉ स्मिथ अंग्रेजो का प्रथम राजदूत व गवर्नर
रोबर्ट क्लाइव : बंगाल का प्रथम गवर्नर। प्लासी के युद्ध के समय गवर्नर इसे भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का जनक माना जाता है।
वारेन हेस्टिग्स : सम्पूर्ण बंगाल का गवर्नर जनरल। पहली बार राज्यों को मिलाया गया। इसी के समय राजस्व अधिकारी के रूप में कलेक्टर का पद सृजित किया गया। प्रथम कलेक्टर जॉन कैम्पबेल।
लॉर्ड विलियम बेंटिग : 1833 के चार्टर अधिनियम के द्वारा इसे सम्पूर्ण भारत का गवर्नर जनरल बनाया गया। इसी से मिल कर राजा राम मोहोन राय ने सती प्रथा डाकण प्रथा इत्यादि प्रथाओं पर रोक लगाया। इसी के शासन काल में मेकाले भारत आया (भारतीय लोगो की शिक्षा हेतु)।
NOTE: भारतीय लोगो की शिक्षा हेतु पहली बार प्रावधान 1813 के चार्टर अधिनियम में किया गया। जहा भारतीय लोगो की शिक्षा के लिए 1 लाख रूपये वार्षिक का प्रावधान किया गया। इसी अधिनियम के द्वारा ईसाई मिशनरिओ को भारत में ईसाई धर्म का प्रसार प्रचार करने की अनुमति दी।
लॉर्ड डलहौजी (1848-1856):
एक ही शासन काल में सर्वाधिक समय तक (8 वर्ष) शासन करने वाला गवर्नर जनरल था। इसने राज्य हड़प निति से सतारा, अवध, उदयपुर, झांसी को हड़प लिया। इसने गोद निषेध प्रथा चलाई जिसे अंग्रेजी में "doctrine of lapse" कहते है। इसे भारत में रेलवे का जनक माना जाता है भारत में प्रथम रेल 16 अप्रैल 1853 को चलाई गई बम्बई से ठाणे इंजन का नाम ब्लैक ब्यूटी था। लॉर्ड डलहौजी को भारत में डाक-तार-बेतार सेवा का जनक कहा जाता है। सार्वजनिक निर्माण विभाग (PWD) की स्थापना इसी के प्रशासन में हुई। भारत में प्रथम कारखाना 1848 में बना। रुड़की विश्वविद्यालय की स्थापना इसी के शासन काल में हुई। वुड डिस्पैज का नियम इसी के शासन काल में लागु किया गया, जिसमे प्राथमिक व उच्च शिक्षा हेतु पहली बार अलग प्रावधान किये गए। अतः वुड डिसपेज को भारतीय शिक्षा का मेग्ना कार्टा कहा जाता है।
लॉर्ड केनिंग : क्रांति के समय भारत का गवर्नर जनरल था। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा नियुक्त अंतिम गवर्नर जनरल। 1857 की क्रांति के दौरान पकडे गए भारतीय स्वंत्रता सेनानियों को मुक्त कर दिया गया। अतः इसे दयालु गवर्नर जनरल भी कहा जाता है। क्रांति के बाद भारत का शासन सीधे सीधे ब्रिटिश ताज को हस्तानांतरित हो गया तथा एक नया पद वायसराय सृजित किया गया। अतः लॉर्ड केनिंग भारत का प्रथम गवर्नर जनरल & वायसराय बना।
लार्ड मेयो : अजमेर में मेयो कॉलेज की स्थापना की 1872 । आधुनिक भारत में पहली बार जनगणना की गई। एक अफगान के द्वारा इसकी गोली मार के हत्या कर दी गई।
NOTE : पहला ऐसा गवर्नर जनरल जिस पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया - क्लाइव
लार्ड लिट्टन (1876 - 80) : 1876 में इसके काल में पहली बार दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया। रॉयल टाइटल एक्ट के जरिये ब्रिटॉन के सम्राट को भारत का सम्राट घोषित कर दिया गया। वर्नाकुलर प्रेस एक्ट के द्वारा भारतीय समाचार पत्रों पर प्रतिबंद लगा दिया। आर्म्स एक्ट के द्वारा 1878 भारतीय लोगो के हथियार रखने पर प्रतिबंद लगा दिया। इसने सिविल सेवा परीक्षाओ में बैठने की आयु घटा कर 19 वर्ष कर दी। भारतीयों को पहली बार सिविल सेवा परीक्षाओ में बैठने का अधिकार 1856 दिया गया।
NOTE: प्रथम ICS बनने वाले व्यक्ति सत्येंद्र नाथ टैगोर थे।
लॉर्ड रिप्पन : पहली बार व्यवस्थीत जनगणना 1881 में हुई। इसे स्थानीय स्वशासन का जनक कहा जाता है अर्थात यह सत्ता का विकेन्द्रीकरण करने वाला प्रथम गवर्नर जनरल & वायसराय था। इसने लॉर्ड लिट्टन द्वारा लागु किये गए वर्नाकुलर प्रेस एक्ट को समाप्त कर दिया।
NOTE : भारीतय प्रेस का मुक्तिदाता चार्ल्स मेटकॉफ को कहा जाता है।
लॉर्ड कर्जन (1899-1905): 1903 अकाल आयोग की स्थापना की। 1905 में बंगाल का विभाजन यह कहते हुए करदिया की बहुत बड़ा क्षेत्र हे सुव्यवस्थित प्रशासन संचालित नहीं किया जा सकता हे। अतः क्षेत्रीयता के आधार पर भारत को पहली बार विभाजन का श्रेय कर्जन को जाता है।
NOTE: साम्प्रदायिकता के आधार पर भारत में पहली बार 1909 में मार्ले मिंटो के द्वारा किया गया जब पहली बार मुस्लिमो हेतु पृथक निर्वाचन की व्यवस्था की गयी। 1911 में बंग भंग वापस ले लिया गया तथा दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया गया, तथा 1912 में दिल्ली को राजधानी बना दिया गया।
लॉर्ड माउंट बेटन: स्वंत्रता के समय भारत का प्रथम गवर्नर जनरल एंड वायसराय। अंग्रेजो द्वारा नियुक्त अंतिम गवर्नर जनरल एंड वायसराय
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
1 लॉर्ड डलहौजी के शासन काल में हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 लागु किया गया। डलहौजी के काल में ही लोक सेवा विभाग की स्थापना की गयी
2 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के समय गवर्नर जनरल लॉर्ड डफरिन थे।
1717 के फरमान का अंग्रेज दुरुपयोग कर रहे थे। 1740 में बंगाल का शासक अलीवर्दी खां बना। इसने इस दुरुपयोग को रोकने का प्रयत्न किया। परन्तु सफल नहीं हो पाया।
1756 में अलीवर्दी खां की मृत्यु हुई तथा उसका दोहित्र सिराजुद्दोला शासक बना। सिराज जब शासक बना तो उसके तीन प्रमुख विरोधी थे
1 पूर्णिया का गवर्नर शौकत बैग
2 उसकी मौसी घसीटी बेगम
3 उसका दामाद मीर जाफ़र
सिराज ने अक्टूबर 1756 में मनिहारी के युद्ध में शौकत बैग को पराजित कर दिया। घसीटी बेगम पर देश द्रोह का आरोप लगा कर उसे जेल में दाल दिया।
मीर जफ़र को सेनापति के पद से हटा कर मीर मदान को सेनापति बनाया
क्लाइव ने सिराज के खिलाफ षडियंत्र रचा और सिराज के दरबार के प्रमुख व्यक्तियों अमीचंद को धन का लालच देकर तथा मीर जाफ़र को बंगाल का नवाब बनाने का लालच देकर अपनी और मिला लिया। क्लाइव ने एक नकली दस्तावेज तैयार किया जिसमे जाफर व अमीचंद की शर्ते लिखी गई, जिसके अनुसार अमीचंद को कुल राजस्व का 50 प्रतिशत धन का लालच देना व जाफर को बंगाल का नवाब बनाना इत्यादि शर्ते शामिल थी। क्लाइव ने इसके उप्पर हस्ताक्षर किये।
इस युद्ध में रॉबर्ट क्लाइव ने सिराज को पराजित किया। सिराज का सेनापति मीर मदान युद्ध में लड़ते हुए मारा गया। दूसरे प्रमुख सेनापति मीर जाफर ने उसके साथ विश्वासघात किया तथा सिराज को महल जाने के लिए बोला जहा जाफ़र के पुत्र मीरन ने सिराज को मार डाला।
इतिहास कार पन्नीकर ने प्लासी के युद्ध को एक सोदा बताया और कहा की बंगाल के धनि लोगो व जाफर ने नवाब को अंग्रेजो के हाथो बेच दिया
मीर जाफर को आधुनिक भारत का प्रथम देशद्रोही माना जाता है।
प्लासी के युद्ध के बाद बंगाल का शासक अंग्रेजो के हाथो की कटपुतली मात्र बन गया
मीर जाफ़र 1757 - 1760:
मीर जाफर को क्लाइव ने बंगाल का नवाब बनाया जाफर ने क्लाइव को 24 परगनो की जमींदारी दी तथा मुग़ल बादशाह आलम गिर द्वितीय से क्लाइव को उमरा की उपाधि दिलवाई।
जाफ़र ने 1757 से 60 के दौरान 3 करोड़ रुपये व अनेक उपहार क्लाइव को दिए अतः जाफर को क्लाइव का गीदड़ कहा जाता है।
जाफर अंग्रेजो से दुखी हो गया और वह उनके चंगुल से निकलने का प्रयत्न करता रहा। 1760 में अंग्रेजो ने जाफर के स्थान पर उसके दामाद मीर कासिम को बंगाल का नवाब बना दिया।
वडेरा का युद्ध 1759 में जाफर के शासन काल में ही लड़ा गया।
मीर कासिम 1760 - 1763
अलीवर्दी खाँ के उत्तराधिकारिओ में सबसे योग्य शासक। उसने नवाब बनते ही हॉलवेल को 2.70 लाख व वेंसिटार्ट को 5 लाख रुपये उपहार में दिए
कंपनी के हस्तक्षेप से बचने हेतु अपनी राजधानी को मुर्शिदाबाद से मुंगेर स्थानांतरित किया।
इसने भारतीय व्यापारियों को भी सभी कर से मुक्त कर दिया।
कंपनी ने 1763 में कासिम को हटा कर जाफर को पुनः नवाब बना दिया। 1763 में पटना हत्या काण्ड में मीर कासिम ने हजारो अंग्रेजो को जिन्दा जला कर मार डाला।
दिसंबर 1763 में वह अवध चला गया, तथा अवध के नवाब शुजाउद्दौला के साथ मिल कर एक सयुंक्त सेना का गठन किया तथा तत्कालीन मुग़ल बादशाह शाह आलम द्वितीय को भी अपनी तरफ सम्मिलित कर लिया।
बिहार के आगरा जिले में स्तिथ है बक्सर। इस युद्ध में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व हैक्टर मुनरो ने किया जब की गवर्नर वेंसिटार्ट था। हैक्टर मुनरो की सेना ने शुजाउद्दौला, मीर कासिम, व शाह आलम द्वितीय की सयुक्त सेना को बुरी तरह पराजित किया। भारतीय इतिहास में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना हेतु यह निर्णायक युद्ध माना जाता है।
इस समय बंगाल का नवाब जाफर था। 1765 में उसकी मृत्यु हुई और उसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र नज़्मुद्दोला को बंगाल का नवाब बनाया गया।
1765 में क्लाइव एक बार पुनः गवर्नर बन कर भारत आया। क्लाइव ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला के साथ 16 अगस्त 1765 को इलाहबाद की संधि की। इस संधि में 50 लाख रूपए युद्ध की क्षतिपूर्ति हेतु शुजाउद्दौला द्वारा क्लाइव को दिए गए।
क्लाइव ने मुग़ल बादशाह आलम द्वितीय से बंगाल बिहार व उड़ीसा की जमींदारी भी ले ली तथा इसके बदले 26 लाख रुपये सालाना मुग़ल बादशाह को दिए गए।
रॉबर्ट क्लाइव ने बंगाल में द्वेद शासन की स्थापना की। इसी द्वेद शासन के दौरान उसने 1766 से लेकर 1770 तक लगभग 7 करोड़ रूपए बंगाल से राजस्व के रूप में वसूले। इसी दौरान बंगाल में भयंकर अकाल पड़ा और लगभग डेढ़ करोड़ लोग बंगाल में भूखमरी के कारण मर गये।
- ब्रिटेन की महारानी : विक्टोरिया
- ब्रिटेन के PM : पॉम स्ट्रेन
- भारत का गवर्नर जनरल : केनिंग
क्रांति पर प्रमुख पुस्तके :
1 अशोक मेहता : द ग्रेट रिबेलियन
2 वीर सावरकर : भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम
3 S. N. सेन : 1857 की क्रांति
4 R. C. मजूमदार : सिपाही विद्रोह (The Sepoy Mutiny)
1857 की क्रांति के 3 चरण माने जाते है।
1 आर्थिक कारण
स्थाई बंदोबस्त : 1793 ई. में लॉर्ड कार्नवालिस गवर्नर जनरल बन कर आया तथा उसने राजस्व वसूलने की एक नयी व्यवस्था को लागु किया। इस व्यवस्था के तहत सम्पूर्ण भूमि का स्वामी जमींदार को बना दिया गया।
यह अधिकार उसे 20 वर्ष हेतु दिया गया। इस व्यवस्था के तहत राजस्व निश्चित कर दिया गया।
जमींदार को किसी एक निश्चित दिन सूर्यास्त होने से पूर्व राजस्व जमा करवाना होता था। ऐसा नहीं कर पाने की स्तिथि में सूर्यास्त कानून की सहायता से जमींदार की जमींदारी नीलाम कर दी जाती थी।
यह व्यवस्था बंगाल बिहार व उड़ीसा में लागु की गयी।
रैय्यतवाडी : यह व्यवस्था कप्तान रीढ़ व टॉमस मुनरो द्वारा लागु की गयी। इस व्यवस्था को बम्बई व मद्रास के क्षेत्रों में लागु किया गया। इस व्यवस्था में सम्पूर्ण भूमि का स्वामी किसान ही होता था, और किसान ही सीधे राजस्व अंग्रेजो को जमा करवाता था। इस व्यवस्था में राजस्व निर्धारित नहीं था। रैय्यतवाडी व्यवस्था भारत में सर्वाधिक 51 प्रतिशत भाग पर लागु थी।
महालवाड़ी : महालवाड़ी व्यवस्था कैप्टेन बर्ड व मैकेंज़ी के द्वारा लागु की गयी। यह व्यवस्था पंजाब अवध आगरा व मध्य भारत में लगाई गई। इस व्यवस्था के तहत महाल अर्थार्त गांव का राजस्व किसी एक व्यक्ति के द्वारा अंग्रेजो को जमा करवाया जाता था।
तालुकेदारी : अवध के क्षेत्र में : महालवाडी व्यवस्था से आमिर वर्ग ओर ज्यादा आमिर हो कर शहर में निवास करने लगा इस स्तिथि में किसानो व जमींदारों के बिच राजस्व इक्कट्ठा करने के लिए एक नविन वर्ग का विकास हुआ जिसे तालुकेदार कहा जाता था।
धार्मिक कारण :
1806 में वेल्लौर विद्रोह हुआ, क्युकी वेल्लौर के सैनिको को उनके धार्मिक चिन्ह माथे पर लगाने से मना कर दिया।
1813 में ईसाई मिशनरी भारत आये तथा ईसाई धर्म का प्रचार प्रसार करने लगे।
1830 में धर्म परिवर्तित करने की इजाज़त दे दी गयी।
1850 में धार्मिक निर्योग्यता अधिनियम पारित किया गया, जिसके द्वारा कहा गया की यदि कोई व्यक्ति ईसाई धर्म में परिवर्तित होता है तो उसे उसकी पैतृक सम्पत्ति से वंचित नहीं किया जायेगा।
तात्कालिक कारण :
लॉर्ड डलहौजी की गोद निषेध व राज्य हड़प निति।
1856 में सामान्य सेवा भर्ती अधिनियम बनाया गया, जिसके तहत भारतीय सैनिको व अधिकारियो को समुन्द्र पार विदेशो में कही भी भेजा जा सकता है।
कलकत्ता के दमदम शास्त्रागार में नए चर्बी वाले कारतूस तथा पहले से प्रचलित ब्राउन बेस राइफल के स्थान पर एक नयी एनफील्ड नामक राइफल लाइ गई, जिसमे इन नए कारतूसों का प्रयोग होना था। सैनिको में यह अफवाह फैला दी गयी की इन कारतूसों में गाय व सूअर की चर्बी लगी हुई है।
विद्रोह की रुपरेखा
कुछ इतिहास करो के अनुसार दो भारतीय अज्जीमुल्ला(नाना साहब के सलाहकार) व सतारा के अपदस्त राजा रानोजी, लॉर्ड डलहौजी के द्वारा अपनाई गई व्यपगत निति का विरोध करने व उसकी शिकायत करने हेतु लन्दन गए। वही पर उन्होंने क्रांति की योजना बनाई। भारत वापस लौटते समय क्रीमिया के शासक उमर पाशा से मिले। 31 मई 1857 का दिन विद्रोह के लिए चुना गया। क्रांति के प्रतिक चिन्ह के रूप में कमल का फूल और रोटी को चुना गया।
कमल का फूल विद्रोह में शामिल होने वाली सभी सैनिक टुकड़ियों को तथा रोटी का चिन्ह गांव के मुखिया व गरीब किसानो तक पहुंचाया गया।
विद्रोह का आरम्भ :
चर्बी वाले कारतूसों के खिलाफ पहला विद्रोह कलकत्ता की बैरकपुर छावनी के एक सैनिक मंगल पण्डे जो की तत्कालीन गाजीपुर(वर्तमान - बलिया) का रहने वाला था। इसने कारतूसों का प्रयोग करने से मना करते हुए कैप्टेन बाग़ और मेजर ह्यूसन को गोली मरी और मार डाला।
मंगल पण्डे 34वी नेटिव इन्फेन्ट्री रेजिमेंट का सैनिक था। उसे इस हत्या कांड के बाद 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गयी। इस प्रकार क्रांति के दौरान शहीद होने वाला प्रथम व्यक्ति मंगल पण्डे था।
10-5-1857 को मेरठ में 20 वी N. I. रेजिमेंट के सैनिको ने विद्रोह कर दिया। तथा अपने अन्य साथी सैनिको को जेल से मुक्त किया और दिल्ली की और प्रस्थान किया।
12-5-1857: को दिल्ली पर कब्ज़ा किया और बहादुर शाह ज़फर द्वितीय को भारत का बादशाह व विद्रोही नेता घोषित किया।
4 जून 1857 को झाँसी में गंगाधर राव की विधवा रानी लक्ष्मी बाई के नेतृत्व में विद्रोह की शुरुआत हुई।
17 जून 1857 को अंग्रेज जनरल ह्यूरोज से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुई।
ह्यूरोज ने रानी की वीरता से प्रभावित हो कर कहा की "भारतीय क्रांतिकारियों में वह एक मात्र महिला मर्द थी" तथा लक्ष्मी बाई को "महलपरी" कहा गया।
प्रमुख विद्रोह व उसका दमन:
मोहनदास करम चंद गाँधी
जन्म : 2 अक्टूबर 1869
माता का नाम : पुतली बाई
पिता का नाम : करम चंद
पत्नी का नाम : कस्तूरबा गाँधी
मृत्यु : 30 मार्च 1948 (शहीद दिवस)
महात्मा गाँधी की उपाधिया :
गोल मज़े सम्मलेन (Round Table Conference) :
1 1930 ई. : पहला गोल मज़े सम्मलेन
2 1931 ई. : दूसरा गोल मज़े सम्मलेन
3 1932 ई. : तीसरा गोल मज़े सम्मलेन
जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर काठियावाड़ गुजरात में हुआ ।
1876 प्राइमरी स्कूल में अध्ययन के साथ ही साथ कस्तूरबा से सगाई हुई।
1881 में राजकोट हाई स्कूल में अध्ययन के लिए गए। 13 वर्ष की आयु में विवाह कर दिया गया।
भावनगर स्कूल से मेट्रिक पास कर शामलदास कॉलेज में प्रवेश लिया परन्तु 1 सत्र बाद ही कॉलेज छोड़ दिया।
1888 में प्रथम पुत्र का जन्म। वकालत की पढाई हेतु लन्दन गए। 3 साल की पढाई पूरी कर के 1891 में वापस देश लौटे।
बम्बई कोलकत्ता तथा राजकोट में वकालत की।
1893 में भारतीय मुस्लिमो द्वारा तथा एक व्यवसाय संघ की मांग पर तथा एक मुस्लिम व्यापारी अब्दुल्ला खाँ के निमंत्रण पर दक्षिण अफ्रीका के ट्रॅन्सवेल की राजधानी प्रोटोरिया पहुंचे तथा वहा रंग भेद निति का सामना किया।
1894 में अफ्रीका में नेटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की तथा एक साप्ताहिक समाचार पत्र "द इंडियन ओपिनियन" भी प्रकाशित करवाया
1901 में ये सपरिवार भारत लौट आये। तथा दक्षिण अफ्रीका में रह रहे भारतीय लोगो को आश्वासन दिया की उन्हें जरुरत पड़ने पर वह पुनः अफ्रीका लौट आएंगे।
1901 के दौरान ही गांधीजी कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में शामिल हुए तथा बम्बई में अपनी वकालत का एक दफ्तर खोला।
1902 में भारतीय समुदाय द्वारा बुलाए जाने पर पुनः अफ्रीका चले गये।
1903 में जोहान्सबर्ग में अपना दफ्तर खोला।
1904 में इंडियन ऑपिनियन सोसाइटी बनाई।
1906 में जुलु विद्रोह के दौरान भारतीय एम्बुलेंस सेवा तैयार की
जोहान्सबर्ग में अपना प्रथम सत्याग्रह प्रारम्भ किया। अनेक विरोधो का सामना करना पड़ा इसी के फल स्वरुप 1908 में सत्याग्रह के लिए पहली बार जोहान्स बर्ग की जेल में रहे।
1910 जोहान्सबर्ग में टॉलस्टाय फर्म(आश्रम) की स्थापना की गांधीजी ने डरबन में फीनिक्स फर्म आश्रम की भी स्थापना की थी।
1913 रंगभेद तथा दमनकारी नीतियों के विरुद्ध अपना सत्याग्रह जारी रखा। तथा इसी हेतु इन्होने "द ग्रेट मार्च" किया जिसमे लगभग 2000 भारतीयों ने न्युक्लेन्स से लेकर नेटाल तक की यात्रा की। अफ़्रीकी सरकार को इनके सामने झुकना पड़ा।
1915 21 वर्षो के प्रवास के बाद जनवरी 1915 में भारत लौटे तथा 1915 में ही अहमदाबाद में ही साबरमती के तट पर साबरमती आश्रम की स्थापना की
1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में उद्घाटन भाषण दिया
गांधीजी के राजनैतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले थे इन्ही की सलाह पर 1915 से 1916 तक भारतीय क्षेत्रों का दौरा किया।
चम्पारन सत्याग्रह आंदोलन : 1917 में बिहार के चम्पारन में हुआ। इस आंदोलन का मुख्य कारण तीन कठिया पद्दति थी। इस पद्दति के अनुसार 3/20 वे भाग पर निल की खेती करना अनिवार्य कर दिया। किसान इससे मुक्ति चाहते थे। अतः राजकुमार शुक्ला के निवेदन पर गाँधी जी बिहार चम्पारण आए। उन्होंने सत्याग्रह किया तथा यह सफल रहा गांधीजी ने अंग्रेजो को 25% राजस्व लौटने पर मजबूर कर दिया। यह गांधीजी का प्रथम सफल आंदोलन था। इसी से प्रभावित होकर रविंद्र नाथ टैगोर ने इन्हे महात्मा की उपाधि दी।
अहमदाबाद मिल मजदुर आंदोलन (1918): यह आंदोलन भारतीय व अंग्रेजी कपडा मिल मालिकों के खिलाफ था। प्लेग महामारी के दौरान मिल मालिकों ने भारतीय मजदूरों को उनके वेतन का 70% बोनस देने का वायदा किया परन्तु महामारी समाप्त होते ही। वह इस बात से मुकर गई। तथा 20 % बोनस देने की बात कही। गाँधीजी की मध्यस्तता के कारण मिल मजदूरों को 35% बोनस दिया गया। गांधीजी ने पहली बार भूख हड़ताल करी।
खेड़ा आंदोनल (गुजरात) 1918 : गुजरात में अकाल पड़ा परन्तु अंग्रेजो ने किसानो पर 23% कर और बढ़ा दिया इस पर गाँधी जी ने आंदोलन किया और गरीब किसानो का राजस्व माफ़ करा लिया। इसमें यह शर्त राखी गई की जो किसान सक्षम है वही लगान देगा।
खिलाफत आंदोलन 1919 से 1922 : इसका उद्देश्य तुर्की में खलीफा के पद की पुनः स्थापना हेतु अंग्रेजो पर दबाव बनाना। अंग्रेजो द्वारा भारतीय सुल्तानों के विरुद्ध उकसाए जाने पर अरब में विद्रोह हुआ इससे भारतीय मुसलमानो की भावनाये आहत हुई। 1922 में मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में तुर्की में खलीफा की सत्ता समाप्त कर दी गयी। और इसी के साथ यह आंदोलन भी समाप्त हो गया।
असहयोग आंदोलन 1920-22 : गांधीजी को रोलेट एक्ट व मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड अधिनियम के कारण बड़ा आघात लगा गांधीजी ने अंग्रेजो के खिलाफ। असहयोग की निति अपनाई। इसका उद्देश्य ब्रिटिश भारत की राजनैतिक आर्थिक व सामाजिक संस्थाओ का बहिष्कार करना तथा ब्रिटिश शासन को ठप्प कर देना।
असहयोग हेतु किये गए प्रयास -
4 फरवरी 1919 को उप्र के गोरखपुर के पास चौरा-चौरी नामक कस्बे में एक अंग्रेजी पुलिस ठाणे को घेरकर आग लगा दी जिसमे 22 अंग्रेज अधिकारी जल कर मारे गए इसी से आहत हो कर गांधीजी ने असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया।
साइमन कमीशन (1927):
1919 के भारत शासन अधिनियम की समीक्षा हेतु 1927 में एक आयोग का गठन किया गया। इस आयोग के अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे इसमें एक भी सदस्य भारतीय नहीं था। अतः भारतीय लोगो ने 3 मार्च 1928 जब जॉन साइमन भारत पहुंचे तो लाहौर में लाला लाजपत राय व उनके सहयोगियों ने विरोध किया। लालाजी पर लाठीचार्ज किया गया। तब लालाजी ने कहा की "मेरे सर पर चलाई गई प्रत्येक लाठी का एक एक वार अंग्रेजी शासन के ताबूत में आखरी कील होगा"
साइमन कमीशन की प्रमुख सिफारिशें
इन समस्त मांगो की पूर्ति हेतु लन्दन में गोल मेज सम्मलेन आयोजित किया गया ।
डांडी मार्च
दिसंबर 1929 में लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य का झंडा फेहराया गया। गांधीजी ने घोषणा की की "शैतान ब्रिटिश शासन के सामने समर्पण ईश्वर तथा मानव के विरुद्ध अपराध है"। 26 जनवरी 1930 को पुरे देश में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।
12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से अपने 78 अनुयायिओं के साथ 24 दिन की पद यात्रा की। 5 अप्रैल 1930 को डंडी पहुंचे तथा 6 अप्रैल को नमक बना कर कानून तोडा।
सुभाष चंद्र बोस ने इस यात्रा की तुलना नेपोलियन के पेरिस मार्च तथा मुसोलिनी के रोम मार्च से की।
सविनय अवज्ञा आंदोलन 6-4-1930
ब्रिटिश साम्राजयवाद के विरुद्ध यह आंदोलन विशेष रूप से कांग्रेस व गांधीजी के द्वारा चलाया गया।
इसका कारण यह था की, यंग इंडिया समाचार पत्र के लेख द्वारा ब्रिटिश सरकार से 11 सूत्री अंतिम मांग पत्र प्रस्तुत की गयी। जिसमे स्वतंत्रता की मांग शामिल नहीं थी।
गांधीजी को उम्मीद थी की अंग्रेजो द्वारा की गयी इस भूल को पुनः सुधार लिया जायेगा। 41 दिनों तक उन्होंने इंतजार किया परन्तु कोई भी निष्कर्ष नहीं निकला। इसी के फल स्वरुप उन्होंने डांडी मार्च किया। और 6 अप्रैल 1930 को नमक बना कर अवज्ञा की।
इस आंदोलन का उद्देश्य कुछ विशिष्ट प्रकार के गैर क़ानूनी कार्य कर के सरकार को जुका देना था।
1930 से 1932 के दौरान 3 गोल मेज सम्मेलनों का आयोजन लन्दन में हुए।
प्रथम गोल मेज सम्मलेन में कांग्रेस ने भाग नहीं लिया। ब्रिटिश संसद यह चाहती थी की। इन गोल मेज सम्मेलनों में कांग्रेस व गांधीजी की पुर्ण रूप से सहभागिता हो। इसी के मध्येनजर अंग्रेज गवर्नर इरविन व गांधीजी के बिच मार्च 1931 में एक समजोता हुआ जिसे Gandhi-Irwin Pact कहा जाता है।
द्वितीय गोल मेज सम्मलेन : इस गोल मेज सम्मलेन में कांग्रेस ने भाग लिया गांधीजी कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में राजपुताना नामक जहाज से लन्दन पहुंचे इस सम्मलेन की अध्यक्षता तत्कालीन प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड के द्वारा की गयी। साम्प्रदयिक कारणों से यह सम्मलेन असफल रहा। ब्रिटिश सरकार ने भारत में एक बार पुनः दमनकारी नीतिया लागु कर दी। अतः जनवरी 1932 में गांधीजी ने एक बार पुनः सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारम्भ किया।
1932 में यावरदा जेल में गांधीजी ने अस्प्रश्यो के लिए अलग चुनावी क्षेत्र के विरोध में उपवास प्रारम्भ किया परन्तु अंत में गुरुदेव की उपस्तिथि में अपना अनशन तोड़ा
1933 में हरिजन नामक साप्ताहिक समाचार पत्र प्रारम्भ किया। तथा साबरमती आश्रम का नाम बदलकर हरिजन आश्रम रखा तथा देश व्यापी आंदोलन छेड़ा।
1934 में भारतीय ग्रामोद्योग संघ की स्थापना
1936 में वर्धा के निकट एक गांव का चयन किया जो की बाद में सेवाग्राम आश्रम के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
1940 व्यक्तिगत सत्याग्रह की घोषणा की। विनोबा भावे को प्रथम व्यक्तिगत सत्याग्रही बनाया।
भारत छोड़ो आंदोलन
इसका प्रारम्भ 6 अगस्त 1942 हुआ गांधीजी ने करो या मारो का मूल मन्त्र दिया। यह आंदोलन भारत को स्वतंत्र भले ही न करवा पया हो परन्तु इसके दूरगामी परिणाम सुखद रहे इसीलिए भारत की स्वाधीनता के लिए किया जाने वाला अंतिम महान प्रयास कहा जाता है।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य :
1944 में सर आगा खाँ महल में कस्तूरबा गाँधी की मृत्यु हो गयी।
1946 में कैबिनेट मिशन से भेट की तथा पूर्वी बंगाल के 49 गावो की शांति यात्रा की।
1947 में साम्प्रदाइक शांति हेतु बिहार की यात्रा की।
नई दिल्ली में लॉर्ड माउंट बेटन तथा मोहमद अली जिन्ना से मिले तथा विभाजन का विरोध किया।
देश के स्वाधीनता दिवस 15 अगस्त को कलकत्ता में दंगो को शांत करने हेतु उपवास किया।
महात्मा गाँधी हमेशा 2 लोगो से परेशान रहते थे एक तो जिन्ना से तथा दूसरा अपने बेटे हरिलाल से।
1948 में उन्होंने उनके जीवन का अंतिम उपवास किया जो की 13 जनवरी से 18 जनवरी तक किया। यह उपवास उन्होंने देश में फैली साम्प्रदायिक हिंसा के विरुद्ध किया था।
30 जनवरी को शाम के समय प्रार्थना के लिए जाते समय बिड़ला हाउस के बहार नाथूराम गोडसे ने गोली मार के हत्या कर दी।
लॉर्ड विलियम बेंटिक ने सती प्रथा पर 1829 में सर्वप्रथम प्रतिबंद बंगाल में लगाया गया।
1830 में इसे बम्बई व मद्रास में लागु किया गया
1833 में इसे सम्पूर्ण भारत में लागु किया गया।
शिशु हत्या पर प्रतिबंद वेलेजली के काल में लगाया गया। यह बंगालियों व राजपूतो में प्रचलित था।
इरविन के समय लागु किया गया। इसमें लड़की की आयु 14 वर्ष तथा लड़के की आयु 18 वर्ष निर्धारित की गयी।
पहली बार दास प्रथा पर रोक 1833 के चार्टर अधिनियम के द्वारा लागु की गयी, परन्तु इसका पूर्ण रूप से उन्मूलन 1843 में हुआ।
भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना 30 दिसम्बर 1906 को ढाका में की गई इसके संस्थापक नवाब सलीमुल्ला थे। वकार-उल-मुल्क मुस्ताक हुसैन इसके प्रथम अध्यक्ष थे परन्तु 1908 में सर आगा खां को इसका स्थाई अध्यक्ष चुन लिया गया।
दिल्ली दरबार का आयोजन 12-12-1911 को किया गया। इसमें दिल्ली को भारत की राजधानी बनाने की घोषणा की गई तथा बंगाल विभाजन वापस ले लिया गया। 1 अप्रैल 1912 को दिल्ली भारत की राजधानी बानी।
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